मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

झारखण्डी राजनीति में ‘ढिंका चिका’ !!


“एतना ध्यान देके अखबार में का पढ़ रहे हो, सुकुवा ? आतो (गांव) के कुल्ही में दारेबुटऽ का नीचे हम निठल्ला लोग का दुपड़ुप (बैठक) में पाँव धरते ही दिकु भइया पूछे, “एही ना, कि आज जाहेरखण्ड के मूर्ख मंत्री भीमसिंह मुंडारी केतना गो एमओयू में साइन किए, भावी दिसोम गुरु अउर वर्तमान उप-मूर्ख मंत्री शरद सोरेन मैथिली को प्रांत का अउर एगो दुसरका राजभासा बना दिए, एही ना ।”

हमको दिकु भइया का इस बात पर बड़ा ताव आया ।
 (हियाँ इ बतला दें कि दिकु भैया दिकु नहीं हैं, उ हैं, दि.कु. किसकु यानी दिलीप कुमार किसकु, हमरे ममेरे भाई, हमसे बड़े । अउर अधिकतर आदिवासियों, खासकर संतालों के तरह दूसरे का बातों में दोस ढूंढ़ने वाले)। बाकी रोज तो हम खून का घूंट पीकर दिकु भइया के कटाक्षों को चुपचाप पचा जाते थे, काहेकि उनका अधिकतर बात ठीक्के निकलता था । लेकिन आज लगता था कि दिकु भइया को इ खबर के बारे में नहीं मालूम था । मउका का फायदा उठाते हुए हम एलाउंस किए, “हाँ, आज तो दिकु भइया आप पूरा पकड़ा गए, रोज्जेरोज बोलते हैं कि अखबार में खाली एमओयू, मैथिली को राजभासा, नक्सली बोलके आदिवासी का हत्या, एही सब बुरा खबर छपता है, कोइयो अच्छा खबर छपबे नहीं करता है, लेकिन देखिए, आज एगो बढ़िया खबर छपा है, अउर आपको कुच्छो पते नहीं है !”

“अरे, सब पता है, अभी बताते हैं तुमरा अच्छा खबर” दिकु भइया बोले ।  हम तो फिर सन्न । तो का, हम जो खबर पढ़के सुना रहे थे, दिकु भइया को हमेसा के तरह मालूम था ?  पर उनका अगला बात से हमरे जान में प्रान आया । उपर से लगता था आज साम्मेसाम बंगला भी फुल डोज चढ़ा चुके थे । उनका एही सब बतवा खराब लगता है । काहे से, के हम तो ताजा-फरेस ताड़ी के सौकीन हैं । अरे प्राक्रितिक चीजवा का बाते अलग होता है ! हँड़िया, हम सिरफ परसाद के रूप में ग्रहण करते हैं, अन्यथा नहीं  । तो खैर, दिकु भइया आगे बोले, “अरे, हम कल्ले न बोल दिए थे कि कोरट जितेन मरांडी को जरुड़े छोड़ देगा । अरे, एगो बेगुनाह को फाँसी चढ़ाना एतना भी आसान नहीं है ।”

हम तुरंत बोले, “दिकु भइया, सही बात है कि जितेन मरांडी का छूटना अच्छा बात है, पर इ तो सबको मालूमे था, इ कोई खबर थोड़े ही है । बढ़िया खबर तो इ हम पढ़के सुना ही रहे हैं ना ।”

“अरे, तुम का पढ़ते ही रहोगे, जिद्दा, तुम बताओ का बात है, लेकिन सॉट कट में,” दिकु भइया बोले ।

“अभी बताते हैं, भइया, बहुते खुसी का बात है,” जिद्दा भइया लप्प से बोल पड़े, “दो बड़के आदिवासी नेता, विश्वबंधु उराँव अउर करमु भगत हाथ मिला लिए हैं, मिलकर लड़ेंगे ।”  

“सही है,” दिकु भइया बोले “इ लोग मिलकर ही तो चुनाव लड़ेंगे । कम से कम जमानतवा तो बेचारों का बच जाएगा । तो एही है तुमरा बढ़िया खबर, हमरे छोटे भाई !”

“हाँ, भइया । एतना बड़का खबर को आप तो कोइयो भाव नहीं दे रहे हैं,” हम बोले, “जाहेरखण्ड अभी नेतृत्वविहीन है । अइसे में इन्ही लोगों से तो आदिवासियों को नेतृत्व का उम्मीद है ।”

कइसा नेतृत्व परदान करेंगे, इ तुमरे दागी नेताद्वय?” दिकु भइया सवाल दागे ।

गिदऽ
 भइया भी टपक पड़े, “अउर कुछ नहीं, झारखण्ड को लूटने का अउर एगो नयका साजिश है कि !” (गिदऽ भइया, ममेरे भाई, हमसे बड़े जिनको भी हम भइया लिखें, हमसे बड़े होंगे)।  

आदिवासी नेतागन एक मंच पर आकर एक नया पहल कर रहे हैं, अउर आपलोग  हैं कि उलजलूल बात किए जा रहे हैं,” हम दूनो भइया लोग का प्रतिवाद किए ।

नेतागन ... गन ... गन ... दंबूक ... पिस्तौल । अब बिल्कुले सही बोले हो, भाई हमरे,” दिकु भइया बोले एही तो पहचान है, हमरे इ नेता ... गन का । गन का बहुते इस्तेमाल करते हैं । अरे, हाल ही में न विश्वबंधु उराँव के सरकारी आवास पर छापा पड़ा था, अउर बाकी साजो-सामान के साथ ही एगो बिना लाइसेंस का गनवा भी बरामद हुआ था ?”

"जी, हाँ ! सही बोले भइया,” अबकी जवाब देने का बारी हॉपॉन भइया याने कि दिकु भइया के अपने छोटे भाई का था जो आचार-व्यवहार में उनसे बिलकुल उलट हैं
| फिर बहुत निरासा के साथ ऊ जोड़े, “लेकिन तमंचे बरामद हुआ, उनका जो सुनाम है, उस हिसाब से तो एके-47 होना चाहिए था ।”

“ठीक बोले, छोटका !” दिकु भइया बोले, “अइसे ही नहीं उनका सुनामी चल रहा है, उनके खिलाफ 10 आपराधिक मामला दर्ज है जो जाहेरखण्ड के विधायकों में सबसे ज्यादे है । उसमें से भी तीन संगीन !”

”इ संगीन का होत है ?” रमेसवा पूछा, “उही ना, जो सिपहिया लोग अपना दम्बुक में सामने तरफ लगाता है ।“

बैठकी के वरिष्ठ सदस्य लोग ठहाका लगाकर हँस पड़े ।        
 

“अरे बूड़बक ! बड़ों के बीच में मत बोलाकर,” सुरेस दा ने झेंपते हुए अपने छोटे भाई को डांटा । फिर दिकु भइया के ओर मुखातिब होते हुए पूछे, “केतना संगीन, भइयाजी ?”

”अरे हत्या के प्रयत्न के आरोप जइसे गम्भीर आरोप इन पर लगे हुए हैं,” दिकु भइया बोले, “अउर जानते हो, अपराधकर्मों में विधायकों में दूसरे लम्बर पर के चल रहा है? एही करमू भगत ।“

“हम भी छापा में सोना का बिसकुट वगैरा बरामद हुआ था, इ सब सुने थे,” सुरेस दा बोले “लेकिन छापा काहे पड़ा था, भइया ?”

”अरे, एतना जल्दी सब भुला गए,” दिकु भइया थोड़े अचरज के साथ बोले, “अरे भू.पू. मूर्खमंत्री सूदन बानरा नहीं था, उसके साथ-साथ सरकारी खजाने से घोटाला करके खदानिस्तान, माइनेरिया, आदि द्वीपों में सोने-चाँदी का खान नहीं खरीदे थे, कुच्छो यादे नहीं रखते हो ?”

”हाँ याद आ गया, साथ में प्रमुख महालेखाकार ने देसी क्रीड़ा प्रतियोगिता के आयोजन में उनके द्वारा क्रीड़ा उपकरन खरीदने में घोटाले का आरोप लगाया था । उस समय ऊ उछल-कूद मंत्री हुआ करते थे,” सुरेस दा बोले “ साथ में उनपर हस्तिनापुर  अउर जम्बुद्वीप के तमाम महानगरों में करोड़ों का लागत वाला फ्लैट सब खरीदने का आरोप भी तो लगा हुआ है ।“

”हाँ भाई, इ सब तो हय्ये है, ऊपर से राजधानी के कईयो गरीब आदिवासी का जमीन हड़पने का भी तो उनपर इलजाम है,” दिकु भइया आगे बोले, “लेकिन तुर्रा इ, कि आदिवासियों के मसीहा होने का दावा करते हैं, अउर गरीब आदिवासी का जमीन लउटाने का माँग को लेकर अनेकों बार मयूरविहार में भारी रैलियां निकाल चुके हैं ।”

“भइया, इनसे हाथ मिलाने वाला करमू भगत भी कोई साधू-भगत नहीं है । उस के खिलाफ सात आपराधिक मामले तो दर्ज हैं ही,” इस बार हॉपॉन भइया बोले, “लेकिन इस बार तो बेचारे को सर मुंडाते ही ओले पड़ गए !”

“काहे, अइसा का हो गया ?” पूछने का बारी इस बार दिकु भइया का था ।

“अरे, उसके अपने संगठन व.वि.स., याने के वनवासी विद्यार्थी संघ के लोग इस बात से बहुत नाराज हैं कि ऊ बिना पूछे-बोले
विश्वबंधु उराँव से हाथ मिला लिया । उन्होंने एलाउंस कर दिया है कि व.वि.स. से करमू भगत को निष्कासित कर दिया गया है,” हॉपॉन भइया बोले, “बकी, इ पता नहीं चल पा रहा है कि व.वि.स. अउर करमू भगत के स्वयंभू कौटिल्य याने स्वघोषित राजनैतिक सलाहकार श्री आमफल खजूर इस लड़ाई में किस तरफ हैं ।”    

“कउन आमफल खजूर ?” दिकु भइया फिर पूछे, “उही न, जो तेल कम्पनी का तेल निकालकर तेल बेचे चल दिया था, माने, चुनाव में लड़ के अपना जमानत जब्त करवा दिया था ?”

”बिलकुल ठीक पहचाने,” हॉपॉन भइया माने ।

”लेकिन इ सब पारटी में विचारधारा का कउनो जरूरत भी है का ?” दिकु भइया पूछे, “इ सब पारटी  का तो फारमूला है कि उलजलुल बकके आदिवासी लोग को भड़का दो, अउर अपना वोट बैंक बना लो ।“

”ठीक कहते हैं, भइया,” इस बार जिद्दा भइया बोले, “इस बार जब दूनों बड़के नेताओं ने हाथ मिलाया, तो उस अवसर पर एगो प्रेसकॉन्फ्रेंस  कम जनता दरबार लगाया गया रहा । उसमें
विश्वबंधु उराँव का प्रोपेगैंडा इनचार्ज प्रो. ओमजय  कर्मकार जब सबसे पथ-प्रदर्शन करने का ढकोसला किया तो स्वनामधन्य आदिवासी पत्रकार पी.के. धुत सलाह दिए कि पारटी को मुद्दों पर चरचा करना चाहिए । इससे उत्साहित एक आदिवासी कार्यकर्ता भगवती उराँव जइसे ही विचारधारा का बात करने लगा, प्रोपराइटर कर्मकार के इसारे पर उसके गुंडे उसको धकियाकर बाहर कर दिए ।”
 
एतने में अखबार वाला आ चहुँपा । जिद्दा भइया उससे ताजा अखबार झपटे अउर उस पर सरपट नजर दउड़ाने लगे । अचानक ही चिल्लाकर बोल पड़े, “ब्रेकिंग न्युज ! संबिधान बिसेसग्य बोल रहे हैं कि कोई स्वतंत्र विधायक नया पारटी नहीं बना सकता । अइसा करना किसी राजनीतिक पारटी में शामिल होना होगा, जो कि संबिधान के  दसवें अनुसूची का उल्लंघन होगा ।”            

“धत तेरे का !” गिदऽ भइया बोले, “इ तो उही बात हो गया, कि खोदा पहाड़, और निकला दूगो मरियल चूहा !!”

इस बार सारे उपस्थित लोग, क्या बूढ़े, क्या बच्चे, सब ठहाका मारकर हँसने लगे ।           

“आपलोग बहुत उलटा-सीधा बोल लिए,” हम बोले, “अरे एतने दिनों के बाद आदिवासी नेतृत्व एकजुट हुआ है, तो आपलोग को उसका स्वागत करना चाहिए अउर उसके दीर्घ जीवन का कामना करना चाहिए ।”

“अरे, काहे का दीर्घ जीवन !” दिकु भइया बोले, “अइसा दो नेता हाथ मिलाया है, जो ढेर दिन नहीं, बस दु साल पहले जाहेरखण्ड विधायिका का चुनाव में एक नहीं, दू-दू चुनाव क्षेत्रों से एक-दुसरे के खिलाफ लड़ा था, उसका इ दिखावटी दोस्ती बारह महीनों से जियादे टिक नहीं सकता।  
इ दिकु बाबा का भविष्यवाणी है ।”    

बस, रमेसवा को मउका हाथ लग गया अपना पहिले का गलती सुधारने का । हुंआ जमा बच्चों के तरफ देखते हुए ऊ नारा लगाया, “दिकु बाबा काऽऽऽ ...”  

उपस्थित बालवृन्द समवेत हर्षनाद किया, “जय !!”

दिकु बाबा, हमरा मतबल है, दिकु भइया, प्रसन्न भए । बंगला के सुरूर में बोले, “अउर इ दूनों नेता अपना मीठा-मीठा बात से इस बेचारी झारखण्डी आदिवासी जनता को अगले बारह महीनों तक बेवकूफ बनाते रहेगा अउर उसको गाना गाके सुनाते रहेगा ।”

”क्या गाएगा ?” हम चकराकर पूछ बइठे ।

”आशुगीत अर्ज़ है, फिल्म ‘रेडी’ के लोकप्रिय गाने के तर्ज़ पर,” दिकु भइया बोले ।

“बारह महीने में, बारह तरीके से,
तुझको ‘खूफिया’ बनाउंगा, रे
ढिंका चिका ढिंका चिका
ढिंका चिका ढिंका चिका    
रे अई अई अई अई ...”    

 * * *


(इस लेख में वर्णित सभी पात्र एवं स्थान काल्पनिक है । किसी वास्तविक व्यक्ति या स्थान के साथ सम्भावित साम्य संयोगमात्र है ।)






2 independent MLAs to float regional party



Ranchi, Dec 15 (PTI) Independent MLA Bandhu Tirkey today said he would float a new regional political party in the New Year along with a fellow legislator. "In principle Independent MLA Chamra Linda and I have decided to float a regional political party to raise burning tribal issues and protecting tribal rights," Tirkey said here. Tirkey and Linda, who have been actively involved in Jharkhand Janadhikar Manch and Adivasi Chhatra Sangh during the domicile agitation in 2003, contested the 2009 assembly elections as independent candidates. Asked what would be the status of the existing groups they are involved in, Tirkey said "may be, both would be merged." Linda was not available for comments.

Constitutional expert Summit Gadodia, however, said "any independent MLA cannot form a political party under tenth schedule of the constitution as (that) amounts to joining a political party." Gadodia was of one the counsels of former Deputy Chief Minister Stephen Marandi in the court of the then assembly Speaker when Marandi had faced disqualification charges five years ago.

शनिवार, 5 नवंबर 2011

मा. इनोसेंट सोरेन का और एक ऑडियो - सांथाल पारगाना सोना दिसोम


आपके खिदमत में हमरे दादा मानोतान इनोसेंट सोरेन के पुरस्कार विजेता एलबम ‘हुल मातकॉम लाठे’ से अउर एक  सुंदर गीत पेस करते हुए हमको बहुत खुसी हो रहा है !  इस गीत को तो संताल परगना का दिसोमगान घोषित कर देना चाहिए!  



सांथाल पारगाना सोना दिसोम

“सांथाल पारगाना हो सोना दिसोम
बिर बुरु ते, गाडा सॉडॉक् ते
दारे नड़ी ते साजावाकान
आतो सिम को राग साँवते
बिर चेंड़ें को चेरो-बेरोक्
मानवा को राग साँवते
मानवा को हॉहॉय साँवते
चान्दॉय गोंङा”


SANTHAL PARGANA SONA DISOM
Santhal Pargana ho Sona Disom
Bir buru te̠ gaḍa so̠ḍok̓ te
Dare nạṛi te̠ saja
oakan
Ato sim ko rag sãwte̠
Bir cẽ̠ṛẽ̠ ko ce̠ro̠-be̠ro̠k̓
Manwa ko rag sãwte̠
Manwa ko ho̠ho̠y sãwte̠
Cando̠y goṅa

हिन्दी अनुवाद:
संताल परगना, सोने सा देश
“संताल परगना, सोने सा देश
वनों-पर्वतों से, नदियों-नालों से
वृक्षों-लताओं से सजा हुआ है 
गाँव के मुर्गों के बांग देते ही
वनपक्षी चहचहाने लगते हैं
मानवों के रोते ही
मानवों  के पुकारते ही
ईश्वर प्रत्युत्तर देते हैं”

गीत व संगीत: (स्व) फादर एंथनी मुर्मू
गायन: मानोतान इनोसेंट सोरेन
स्रोत: 'हूल मातकोम लाठे' एल्बम
अनुवाद: आपका सेवक







 

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

संताली संगीतविशारद मानोतान इनोसेंट सोरेन का एक ऑडियो

हमको बहुत खुसी हो रहा है कि हम आपके खिदमत में पेस कर रहे हैं हमरे दादा मानोतान इनोसेंट सोरेन के पुरस्कार विजेता एलबम ‘हुल मातकॉम लाठे’ से एक मर्मस्पर्शी गीत !   





सोनॅरॉ रूप दिसम
“सोनॅरॉ रूप रूपॅरॉ रूप
हिरऽ मनी रूप लेका दिसम तिञ दॉ
जेमॉन ऑलॉक् आर अकिल तेञ लाहायॅन
तेमॉन दिसम खॉन, सोना दिसम खॉनिञ सङगिञेना ।
सोनॅरॉ रूप रूपॅरॉ रूप
हिरऽ मनी रूप लेका हापड़ाम तिञ दॉ
चेका बोन बेगारॅन चेका बोन आपराँड़ॅन
पिलचु गॉड़ॉम बाबा, पिलचु गॉड़ॉम नायोञ हिड़िञ कॅत् बॅन ।”
ऑनॉलियऽ: मानॉतान इनोसेंट सॉरॅन

Sone̠ro̠ Rup Disạm
“Sone̠ro̠ rup rupe̠ro̠ rup
Hirạ mạni rup leka disạm tiǹ do̠
Je̠mo̠n o̠lo̠k̓ ar ạkil teǹ lahaena
Te̠mo̠n disạm kho̠n, sona disạm kho̠niǹ sạṅgiǹena.
Sone̠ro̠ rup rupe̠ro̠ rup
Hirạ mạni rup leka hapṛam tiǹ do̠
Ceka bon begare̠n ceka bon aprãṛe̠n
Pilcu go̠ṛo̠m baba, Pilcu go̠ṛo̠m nayoǹ hiṛiǹ kẹt̓ be̠n.” 
O̠no̠liạ: Mano̠tan Inosenṭ So̠re̠n



इनोसेंट सॉरॅन




हिन्दी अनुवाद:
सोने सा देश
“सोने सा देश, चाँदी सा देश
हीरे माणिक सा मेरा देश
जैसे ही शिक्षा और बुद्धि में मैं आगे बढ़ा
वैसे ही अपने देश से, सोने से देश से मैं दूर हो गया । 
सोने सा देश, चाँदी सा देश
हीरे माणिक सा मेरा देश
कैसे हम अलग हो गए, कैसे हम बिछड़ गए
पिलचू पुरखे बाबा, पिलचू पुरखिन माँ तुमको मैंने भुला दिया ।”  
गीत: श्री इनोसेंट सोरेन
प्रेरणा: (स्व.) फा. एंथनी मुरमु
अनुवाद: आपका सेवक
स्रोत: 'हूल मातकोम लाठे' संगीत एल्बम

English translation:
My Golden Nation
“Golden nation, silvery nation
My nation is like a ruby, like a diamond
As I got educated and became intelligent
I moved farther from my beloved golden nation.
Golden nation, silvery nation
My nation is like a ruby, like a diamond
Why we separated, why we parted
Pilchu forefather, Pilchu grandmother, I forgot you all.”
Composition: Mr. Innocent Soren
Inspiration: (Late) Fr. Anthony Murmu
Translation: Rạnjit Kumar Hãsdak̓   
Source: 'Hul Matkom Laṭhe' music album



रंजीत हांसदाक्







सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

Adivasis Are Not Hindus: Dr. Ram Dayal Munda




डॉ. राम दयाल मुंडा के कुछ विचार -
उन्हें श्रद्धांजलिस्वरूप प्रस्तुत

‘Adivasis have been wrongly categorised as Hindus for administrative convenience’

‘A study of their practices will help in restoring self-respect to them’

News: The Hindu
Mangalore, Feb 12: Calling for more academic research into primal religions in the country, Padma Shri award winner and former Vice-Chancellor of Ranchi University Ram Dayal Munda has said that the Adivasis in India have been wrongly categorised as Hindus for the sake of administrative convenience.
“Adivasis are followers of ‘Adi-Dharam’ not Hindiusm,” Mr. Munda said, while delivering the keynote address at the inaugural session of a three-day seminar on “Spirituality of primal religions”, organised by the Mangalore Diocesan Chair in Christianity on Thursday.
Mr. Munda said that there were only six officially recognised religious classifications in the country, namely Hinduism, Islam, Christianity, Buddhism, Sikhism and a grouping of small but organised religions termed “Others”.
Of the over 10 crore Adivasis in the country, 90 per cent had been placed within the Hindu fold and the rest had embraced Islam, Christianity and Buddhism. Stating that ancient Adivasi practices had nothing in common with the Vedic traditions of Hinduism, he said that Adivasis had been reluctantly accommodated at the bottom of the Hindu fold.

Ulterior motive
Despite the reluctance, the Adivasis were accommodated within Hinduism with the ulterior motive of forming a formidable political grouping in pursuit of cultural nationalism, he said.
He was equally critical of the other organised religions such as Christianity and Islam, which admitted Adivasis but kept them marginalised and diluted their ethnic identity, according to him.
Mr. Munda, who has co-authored a book on Adi Dharam, which is a compilation of various spiritual practices and beliefs of Adivasis, said that more efforts should be made to document the orally inherited cultural traditions of these people in the country.
Such studies across the country would help in scientifically establishing the already well-known belief that Adi Dharam ran like a common thread through Adivasi cultures across the country.
“Worship of forces of nature, ancestors and deification of local heroes is central to all Adivasi practices,” he said.

Study needed
An academic study into the practices of over 500 Adivasi communities would also help in restoring the self-respect of the Adivasis, who had always occupied an amorphous position, somewhere on the fringes of organised religions. “Such studies will help Adivasis notice that they are the same people. This will have powerful political ramifications that can lead to the emancipation of the community,” he said.
He said that Dalits too should be part of this social, political and cultural grouping, since their cultural practices too bore close resemblance to Adivasi traditions.
He was opposed to Ambedkar’s efforts on converting the Dalits into Buddhism. “Firstly, there is a concerted effort to project the Buddha as the incarnation of a Hindu god. Secondly, the act of conversion takes away Adivasi and Dalit pride in their primal spiritual beliefs,” he said.

(‘द हिन्दु’ से साभार)
http://www.hindu.com/2010/02/12/stories/2010021260080300.htm

सोमवार, 26 सितंबर 2011

संताली भाषा की देवनागरी और रोमन लिपियां




नीचे एक पुराना खबर दे रहे हैं. खबर में इस्पेलिंगवा का बहुते गलती भरा हुआ है (हमरे लिखने जैसा). बहुत सारा फैक्टवा भी गलतिए है. फिर भी एक बड़े लेखक का राय है.
इसके अलावे और तीन खबर भी नीचे देखिए ।

देवनागरी लिपि में संताली साहित्य काफी समृद्ध है
Dec 21, 11:50 pm
गोड्डा। सन् 1856 के पहले संताल परगना का नाम जंगल तराई परगना था। संताली साहित्यकार परीक्षित मंडल बताते हैं कि 1856 में सिद्धो-कान्हू, चांद भैरव के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक जोरदार आन्दोलन हुआ था। इस आंदोलन में तकरीबन दस हजार संतालों की नृशंस हत्या कर दी गयी थी। आन्दोलन को दबाने और संताल जनजातियों को खुश रखने के लिये जंगल तराई परगना का नाम 22 दिसंबर 1856 को संताल परगना रखा गया। श्री मंडल बताते हैं कि इसका प्रथम डीसी एस्लो ईडन थे और संताल परगना का कमिश्नरी भागलपुर था। उस समय भागलपुर कमिश्नर मि. आल्वा थे।
22 दिसंबर 2003 को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में संताली भाषा को सम्मिलित किया गया। यही कारण है कि 22 दिसंबर को संताली दिवस मनाया जाता है। श्री मंडल ने संताली भाषा के संबंध में बताया कि संताली भाषा पांच लिपि-देवनागरी, रोमन, उड़िया, बंगला, ओलचिकी लिपि में लिखी व पढ़ी जाती है। रोमन लिपि में जार्ज फिलिप्स ने 1852 में सर्वप्रथम संताली साहित्य का प्रकाशन किया था उसके बाद पी. ओ. बोर्डिग ने रोमन लिपि में होड़कू रेन मारी हापड़ाम कू रिया कथा का प्रकाशन किया। ओलचिकी लिपि में भी संताली साहित्य नगण्य है। देवनागरी लिपि में संताली साहित्य काफी समृद्ध है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_6040983.html (इ कड़ी अभी मृत हो चुका है)
नोट :- ञेल ताबोनपे - ओलचिकी लिपि में संताली साहित्य नगण्य है। देवनागरी लिपि में संताली साहित्य काफी समृद्ध है।

बैठक में संताली भाषा व साहित्य के विकास पर जोर
Jan 21, 12:24 am
साहिबगंज। विनय भवन सभाकक्ष में आल नेशनल संताली लिटरेरी एंड एजुकेशनल रिसर्च आर्गेनाइजेशन की बुधवार को उपाध्यक्ष प्रधान किस्कू की अध्यक्षता में बैठक हुई।
बैठक में झारखंड की वर्तमान शिक्षा नीति पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। सरकारी विद्यालयों में मानक शिक्षा की व्यवस्था का अभाव है और झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है। यहां रहने वाली अधिकांश जनजातियां अशिक्षित है। ऐसे में यदि उनके बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार स्थानीय भाषा में होना चाहिए। संताल परगना में अधिकतर जनजाति संताल की है इसलिए यहां संताली की पढ़ाई रोमन एवं देवनागरी लिपि में करायी जाए, ऐसा पहले भी होता था। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व सरकार को गुमराह कर संताली भाषा एवं साहित्य के विकास की गति को अवरुद्ध करना चाहती है। अन्सलेरो ने नये सरकार के मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री से उम्मीद जताई है कि वे जन भावना की कद्र करते हुए नीतिगत फैसला लेते हुए संताली भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए पहल करेगी।
इस अवसर पर छवि हेम्ब्रम, फा. टोम, मिथियस बेसरा, प्रेम बेसरा हेम्ब्रम, फ्रानसिस मुर्मू, जेठा मरांडी, डा. विजय हांसदा, मथियस किस्कू, मोनिका किस्कू, सुशीला सोरेन, शीला मुर्मू, संजू मरांडी, जोसेफ टुडू आदि मौजूद थे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_6120419_1.html (इ कड़ी अभी मृत हो चुका है)


संथाली लिपि को ले सीएम से मिला शिष्टमंडल
Mar 25, 11:56 pm
साहिबगंज। आल नेशनल संताली लिटरेरी एंड एजूकेशनल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के तत्वावधान में संताली लिपि को ले सात सदस्यीय एक प्रतिनिधि मंडल छवि हेम्ब्रम की अध्यक्षता में मुख्य मंत्री शिबू सोरेन से मिला एवं संताली भाषा की किताब ओलचिकी के बजाय देवनागरी या रोमन लिपि में छापने की मांग की।
मुख्यमंत्री को सौंपे ज्ञापन में प्रतिनिधि मंडल ने संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद सभी स्तरों पर संताली में पढ़ाई अनिवार्य होनी चाहिए।
परंतु सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत जो संताली भाषा की पुस्तकें तैयार की गई है वो जन भाषा एवं लिपि में नहीं लिखी गई है। ये ऐसी लिपि में लिखी गई है जिसका उपयोग बहुसंख्यक संताल नहीं करते। संताली में बोली जाने वाली ध्वनि का सही उच्चारण इसमें नहीं किया जा सकता और ना लिखी जाती है। ज्ञापन में उदाहरण देकर बताया गया है कि देवनागरी में दाक् का हिन्दी पानी है। रोमन लिपि में भी डीएकेका अर्थ पानी ही होता है। जबकि ओलचिकी में इसका अर्थ बदल जाता है।
दूसरे यह कि संताली भाषा की विशेषता हिजुक् का अर्थ आना, चालाक् का अर्थ जाना, फेडोक् का अर्थ उतरना, हेच् का अर्थ आना, देच् का अर्थ चढ़ना, मुच् का अर्थ चींटी आदि शब्दों का सही उच्चारण के लिए उपयोग होने वाले शब्द व चिन्ह को प्रयोग करने से होता है परंतु इस मूल शब्द को लिखने के लिए ओलचिकी में कोई शब्द या चिन्ह नहीं है। 
प्रतिनिधियों ने मांग किया है कि उनकी कमेटी द्वारा अनुशंसित सिलेबस ही प्राथमिक से लेकर पीजी तक अनिवार्य रूप से लागू किया जाय। समिति ने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को सिलेबस भी उपलब्ध कराया है। प्रतिनिधि मंडल में गोटा भारत सि.का. हूल बैसी के सचिव जे.सोरेन, छवि हेम्ब्रम, समिति के अध्यक्ष प्रधान किस्कु, कालेज छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष इग्नेशियस मुर्मू, अध्यक्ष मनोज मरांडी, किशोर कुमार हेम्ब्रम, रोशन मुर्मू शामिल थे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_6285385.html (इ कड़ी अभी मृत हो चुका है)




शुक्रवार 28 अक्तूबर 2011 को निम्नलिखित 1 (एक) समाचार इस ब्लॉग पोस्ट में जोड़ा गया  

 झारखंड शिक्षा परियोजना पर त्रुटिपूर्ण संताली पुस्तक प्रकाशित करने का आरोप

Jul 29, 2011  08:04 pm
दुमका, निज प्रतिनिधि : संताली परसी लहान्ती बैसी ने झारखंड शिक्षा परियोजना दुमका पर संताली पुस्तक चिकि ओरोम के त्रुटिपूर्ण प्रकाशन का आरोप लगाया गया है। इस बावत संगठन की हुई एक बैठक में बताया गया कि संताली भाषा को लिखने व पढ़ने के लिए 46 अक्षर की आवश्यकता होती है जबकि प्रकाशित पुस्तक में मात्र 30 अक्षर का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा पुस्तक में और भी कई त्रुटियां है जो पुस्तक प्रकाशन के उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहा है। बैठक के बाद संगठन ने उपायुक्त प्रशांत कुमार को एक ज्ञापन देकर उक्त पुस्तक के वितरण पर तत्काल रोक लगाने, ओलचिकी लिपि में प्रकाशित पुस्तकों के माध्यम से संताली भाषा की पढ़ाई पर रोक लगाने, प्राथमिक विद्यालयों में संताली की पढ़ाई के लिए देवनागरी व रोमन लिपि से पुस्तक का प्रकाशन कर वितरण करने आदि की मांग की। उपायुक्त को दिये गये ज्ञापन में संगठन के हानुक हांसदा, सहदेव सोरेन, लुसु हेम्ब्रम, देवेन्द्र टुडू, रुबीन किस्कू, मोतीलाल मरांडी, अभिमन्यु बेसरा, सानुएल सोरेन आदि के हस्ताक्षर है।




प्रत्येक विद्यालय में हो संताली भाषा के शिक्षक
Sep 19, 2011 07:20 pm
साहिबगंज, जागरण प्रतिनिधि: झारखंड सरकार द्वारा संताली को द्वितीय राजभाषा का दर्ज दिये जाने के बाद से उत्साहित संताली भाषा भाषियों ने रविवार को एक जागरूकता रैली निकाली जिसमें भारी संख्या में आदिवासी समाज की महिला, पुरुष व बच्चे शामिल हुए। कार्यक्रम का नेतृत्व सिविल सर्जन डा.भागवत मरांडी ने किया।
रविवार को निकाले गये जागरूकता रैली की शुरूआत विनय भवन के मुख्य द्वार से शुरू हुई। जो शहर के सभी मार्गो से होते हुए कालेज पहुंच कर संपन्न हुई। रैली के बाद आंसेलरो ने मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन उपायुक्त को सौंपा जिसमें कहा गया कि संताली को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाना संताली साहित्य के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही मांग किया गया कि राज्य के सभी प्राथमिक, मध्य व उच्च विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में संताली शिक्षकों के लिए पद सृजन करते हुए अनिवार्य रूप से संताली भाषा एवं साहित्य की पढ़ाई शुरू किया जाय, स्कूलों व कालेजों में पढ़ायी जाने वाली पुस्तकों का प्रकाशन सरकार स्वयं देवनागरी एवं रोमन लिपि में कराये, सभी कार्यालय के लिए संताली अनुवादकों का पद सृजन करते हुए संताली अनुवादकों की बहाली किया जाय, सभी सरकारी अधिसूचना एवं आदेश द्वितीय राजभाषा में जारी किया जाय आदि शामिल है।




संताली-देवनागरी लिपि का इतिहास
जानने के लिए इस कड़ी को देखिए

अउर भी,   
सिविल सर्विसेज़ बिडऊ लगित् दॉ क्वेश्चन पेपर दॉ देवनागरी रेगे को सेट एत् काना । न्होंडे ञेल ताबोनपे :–




अउर आखिर में, 
देखिए, ओडिसा सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के समिति ने ऑलचिकी का कैसा छीछालेदर किया है ।

“Roman script is used to write languages in Africa, Latin America and parts of India and Orissa. Chinese script is the bridge among mutually unintelligible languages/ dialects counted under Chinese. A single script is read differently by speakers of different dialects and holds them together. In India, Sanskrit is written in all the scripts of India. Konkani and Santali are written in five scripts each. Sindhi is written in Nagari and Perso-rabic, Hindi, Marathi and Sanskrit sharing one script, Nagari, Bengali, Assemese share one script each with minor 14 modifications. So are Telugu and Kannada. Therefore need for two scripts for two different languages is not a necessity.”
“Having separate script is no advantage.”

“Experimentally Santali language with Ol Chiki script was introduced in 30 schools. According to the Kundu Report the experiment has failed.”
“First of all it is not true that “At present the Santals all over India have started using the scripts” A very miniscule section of Santals have opted for Ol-Chiki in Orissa.The roadside urban and suburban centers do not want Ol Chiki .They prefer Oriya and Bengali. In Bihar Santali is written in Nagari.  The Govt. of Orissa (Dept. of Education) vide their resolution No.XIXEM 15/91-7710 dt. 25/2/91 decided to introduce the teaching of Santali language in Ol Chiki script on an experimental basis, as an additional language at the primary stage” in 30 primary schools of Mayurbhanj, Keonjhar and Sundargarh district. As follow up to this resolution teachers were selected, Ol Chiki primers were prepared and teaching of Santali language in Ol Chiki script was introduced in 30 schools( 20 in Mayurbhanj, 5 in Keonjhar and 5 in Sundargarh district) from May 1992.
The experiment failed. The report of the Committee set up by the Govt. of Orissa came to the conclusion that the parents “are found to believe in competition and tuition. They are more in favour of learning Oriya and English. Learning their own language and script is secondary for them (P.13)” It is most unfortunate that emphasis on the new script takes parents away from their own language.”

“The Govt. is committed to maintain the language and not necessarily to be printed in Ol Chiki script.”

“In many of the schools teachers spoke of the Ol Chiki language. Almost everywhere we corrected them saying that Ol Chiki is the script and Santali is the language. We got the impression that their training is defective. They are told precious little about the tribal language and culture.”

“The Santals remaining in different states write their languages in different scripts. These facilities link the home language with the dominant state language. It helps them participate in the development and reconstruction of the State at the earliest.”

“The discussion with ASECA Rairangpur representatives was revealing. They have a single point agenda-Santali should be taught through Ol Chiki . They made two points. a. Santali pronunciation can only be captured through Ol Chiki script. b. Communication among Santals living in different states is only possible through a single script. 
It was pointed out to them that Sanskrit survived because it was written in various scripts of the country. All the scripts captured Sanskrit pronunciation. More over Telugu and Kannada, Bengali and Assemese, Sanskrit, Marathi and Konkani scripts are written in their respective regions. Nobody says Telugu is written in Kannada script. There is no reason why a modified Oriya script cannot be called the Santali script in Orissa.”

“We met some intellectuals in Baripada. One of them said that since one generation is to be educated in the new script to teach the next and new books are to be written the Santals will be 50 years behind the time.
Assuming that the new script is adopted the literacy rate will go down immediately. This is another validation of the statement that the Santal will go backwards by 50 years, if a new script is introduced at this stage.”

“The Committee is of opinion that any language can be written in any script and there is no bar. Pronunciation of some words in a language does not hamper the basic character of a language, or else English would not have been the language of world, and by now, due to bad pronunciation, it would have lost its chastity. Instead by adopting many new words from many culture, English become the richest language for its assimilative quality.”

पूरा रिपोर्ट यहाँ देखें :-
   



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