मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

ऑल चिकि




संताली भाषा का मूलत: अपना कोई लिपि नहीं था । इसलिए उसे बांगला, उड़िया, रोमन अउर देवनागरी, इत्यादि कई लिपियों में लिखा गया । फिर, बीसवां सदी का पूर्वार्द्ध में ऑल चिकि का आविष्कार हुआ । ऑल चिकि एक वर्णात्मक (alphabetic) लिपि है, जिसमें 30 वर्ण ( 6 स्वर अउर 24 व्यञ्जन वर्ण) तथा 5 बुनियादी डायाक्रिटिक चिन्ह हैं । डायाक्रिटिक चिन्ह के संयोग से तीन अतिरिक्त स्वर वर्ण बनाए जा सकते हैं ।
ऑल चिकि के समर्थकों का मानना है कि सिरफ अउर सिरफ ऑल चिकि में ही संताली भाषा को सही-सही रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है । हम सब जानते हैं कि यह दावा केतना हास्यास्पद है । ऊपर अउर नीचे हम दूगो फोटुआ दिए हैं, जिससे साफ पता चलता है कि ऑल चिकि में जितना कुछ हैं कम से कम उतना अन्य किसी भी लिपि यानी रोमन (परिवर्धित), बांगला अउर देवनागरी में भी है, बल्कि कुछ अउर भी बढ़कर है ।


एतना ही नहीं, इनका तो यही मानना है कि यही एकमात्र लिपि है जो संताली भाषा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है । हम आगे देखेंगे कि संताली भाषा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होना तो दूर, यह संताली भाषा के  दक्खिनी बोली तक के लिए भी उपयुक्त नहीं है ।

एगो अभिमत
पहले ऑल चिकी पर एगो अभिमत देखें :-
The alphabet was designed for a southern dialect of Santali spoken in the Mayurbhanj district of the Indian state of Orissa.
Santali is also written with the OriyaBengaliDevanagari and Latin alphabets.

स्पष्ट है कि ऑल चिकि का आविष्कार सिरफ उड़ीसा प्रांत के मयुरभंज जिले में  बोले जाने वाले संताली के दक्खिनी बोली के लिए हुआ था, ना कि सम्पूर्ण संताली भाषा के लिए । लेकिन हम आगे देखेंगे कि यह संताली भाषा के किसी क्षेत्रीय बोली तक के लिए भी उपयुक्त नहीं है ।

लिपि के आविष्कार का औचित्य
भाषा विज्ञानी मानते हैं कि :-
लिपि की उत्पत्ति दैवी अथवा अकस्मात नहीं होती, बल्कि यह एक सुदीर्घ परम्परा का परिणाम होती है .. – रमेश चन्द्र, ‘देवनागरी लिपि और राजभाषा हिन्दी’ 
किसी लिपि, जो वैज्ञानिक भी हो, का आविष्कार करना कोई बहुत कठिन नहीं है । संताली भाषा को लिखने के लिए अब तक हमरी जानकारी में कम से कम 16 लिपियों का आविष्कार हो चुका है । सवाल है, क्या किसी लिपि का आविष्कार किया जा सकता है ?? जब तक कोई आविष्कृत लिपि जनप्रिय न हो तो तब तक अइसे लिपि का आविष्कार करना बेकार है । अउर उससे भी ज्यादा जरूरी है कि अगर किसी लिपि का अगर आविष्कार ही किया गया है तो ऊ पूरे तरह से वैज्ञानिक अउर दोषरहित हो । ऑलचिकि जनप्रिय है अथवा नहीं, इ हमलोग इस आलेख के अंत में देखेंगे । पहले इ देखते हैं कि ऑल चिकि  वैज्ञानिक अउर दोषरहित है या नहीं ??

ऑल चिकि का दोषपूर्ण वर्णमाला  
ऑल चिकि के अधिकतर वर्ण दिखने में कृत्रिम हैं । आलोचक इन वर्णों के स्रोत का घोर निन्दा किए हैं । खैर, हम वर्णों के स्रोत के इस निन्दा को दोहराने के बदले इ कहेंगे कि वर्णों के कई समूह अइसे हैं, जो दिखने में एक जइसे हैं, अर्थात एक-दूसरे का प्रतिछाया (mirror image) हैं, या उनको ऊपर से नीचे या दाएं से बाएं घुमाकर अतिरिक्त वर्ण बना लिए गए थे । उदाहरण :-
समस्या इ है, कि इन वर्णों का सिरफ रूप ही एक है, अउर कोई गुण एक जइसा नहीं है । केतना अच्छा होता अगर एक जइसे दिखने वाले वर्ण ध्वनि में भी एक तरह के होते । अथवा, कम से कम, ऑल्चिकि वर्णमाला में एक जइसे वर्ण एक क्रम में होते ।  
अगर अइसा होता, तो ऑल्चिकि को सीखना ना सिरफ आसान होता, बल्कि इ अउर जियादे लोकप्रिय होता ।
Who was preventing any one to arrange the similar looking characters in Olciki on the basis of its sound or in a particular order to make it more learning-friendly?  

डायाक्रिटिक मार्क का प्रयोग
ऑल चिकि के समर्थक अक्सर परिवर्धित रोमन लिपि का आलोचना इसलिए करते हैं काहे कि उसमें डायाक्रिटिक चिन्हों का इस्तेमाल हुआ है, जबकि स्वयं ऑल चिकि में जमकर डायाक्रिटिक चिन्हों का व्यवहार होता है ।

कई ध्वनियों के लिए लेखिमों का अभाव   
ऑलचिकि में रोमन के ही तरह कई ध्वनियों (Phonemes) के लिए लेखिमों का अभाव है । उदाहरण :-     
ख, घ, छ, झ, थ, ध, ठ, ढ, फ, भ ।     
लेकिन रोमन लिपि अचानक नहीं बना । हज़ारों सालों से उसका क्रमिक विकास हुआ है, अउर आज इ अपना वर्तमान दशा में हैं । जइसा कि हम पाते हैं कि इसमें अक्षरों का संख्या सीमित है । इसलिए महाप्राण ध्वनियों (aspirated consonants) के लिए दो-दो वर्णों को जोड़कर नए प्रतीक बनाने पड़े । यथा :-   
ख = Kh, घ = Gh, छ = Ch, झ = Jh, थ = Th, ध = Dh, ठ = Th, ढ = Dh, फ = Ph, भ = Bh ।   
लेकिन ऑल्चिकि लिपि का तो क्रमिक  विकास नहीं हुआ है, उसका तो आविष्कार किया गया है । तो क्या मजबूरी था इसका आविष्कार के समय कि इसमें अउर दस (या चौदह) नए अक्षर नहीं जोड़े जा सकते थे ??  
Who was preventing any one to add few more characters in Olciki to accommodate new characters to represent Santali correctly?  
हमरे समझ से एक ही मजबूरी था । ऑल्चिकि को अंगरेजी या फिर कहें रोमन,के फारमूले पर बनाया गया था । कुछ लोग कहते हैं, कि रोमन का नकल किया गया है ।  
जो भी हो, हमरे समझ से इ ऑल्चिकि का एगो बड़ा दोष है ।   
यहाँ पर देखें कि इस सम्बन्ध में भाषा विज्ञानियों का क्या अभिमत है ।
एच.ए. ग्लीसन :-
Ideally an alphabetic system should have a one to one correspondence between phonemes and graphemes. That is each grapheme would represent one phoneme and each phoneme would be represented by one grapheme” (An Introduction to Descriptive Linguistics: Writing System, Ch. 35, pp. 418)
एल. ब्लूमफील्ड :- The principle of alphabetic writing one symbol for each phoneme is applicable, of course, to any language” (Language, Writing Records, Ch. 17, pp. 291)
आर.एम.एस. हेफनर :- there shall be a separate sign for each distinctive sound” (General Phonetics)
ब्लूक टुगारे :- All we need here is one symbol for each phoneme of the language to be transcribed.” (Outline of Linguistic Analysis, pp. 46)  
इस समस्या का एक्के गो समाधान था, और ऊ इ था कि ऑल्चिकि में अउर चार नए वर्ण जोड़ दिए जाते । आफ्टर ऑल, 
What was preventing any one to add few more characters in Olciki to accommodate new characters to represent Santali correctly?”  

ऑल चिकि की बोर्ड   
अब एगो मध्यांतर ब्रेक लेते हुए ऑल चिकि के की बोर्ड को देखलाते हैं । ऑल चिकि के की बोर्ड से हमरा तात्पर्य है कि ऑल चिकि के विभिन्न वर्णों को टाइप करने के लिए कम्पूटरहा के की बोर्ड पर जिस-जिस  ‘की’ को टाइप करना पड़े उसका चित्रण ।
ऑल चिकि के दोषों को देखलाने के लिए हम जो उदाहरण देंगे, उसमें इ की बोर्ड काम में आने वाला है ।    

दो अलग-अलग वर्ण या वर्णयुग्म के द्वारा एक ही ध्वनि को देखलाना      
     
में देखलाए हैं, वइसे होता है ।   
अब एगो बतवा बतलाइए, अगर कोई अक्षर  voiceless है, तो कउन जरूरी है कि ऊ /h/ ही होगा । ऊ काहे नहीं /a/ या /b/ या /c/ या /d/ आदि-आदि नहीं हो सकता ??
इसलिए तो हम अपना चार्ट में पहले उसको /h/ से देखा रहे थे लेकिन अब ‘नल’ याने ‘शून्य’ याने  Ø चिन्ह से देखा रहे हैं । 
आइए, देखें कि ऑल चिकि के समर्थक इसके बारे में क्या कहते हैं ??  
<“Ahad:
In Ol Chiki, the letters, /AG/,  /AAJ/,  /UD/, and  /OB/ are semi-consonants. These semi-consonants become consonants (voiced equivalents), when they are immediately followed by a vowel or Ahad. This generates dual sounds from these semi-consonants depending on whether they are immediately followed by a vowel/Ahad or not. This is a feature unique to Ol Chiki, which is not observed in any other writing system.”
अउर इ भी देखें :-   
<< “Santali language:
Santali language contains some phonetics which are generally not used in English and  neighbouring  Indian languages, and hence,  learning the correct pronunciations of Ol Chiki letters is very important. In fact, these pronunciations give a feeling of why Santali language needs a separate script, specially the pronunciations of unreleased stops/ k', c', t', p' /, which are not found in English and other Indic languages. It is a momentary obstruction of the passage of air by the glottis and its sudden release, which creates a small explosion of air,  giving the consonant a hard sound. Another notable feature of Santali language is the presence of voiced and voiceless /h/. The voiceless /h/ occurs frequently in Santali language.”>> 
हा, हा, हा, हा, हा .. <The  voiceless /h/ occurs frequently in Santali language.> !!!!
Voiced अउर Voiceless Consonants का मतलब लोग-बाग जानते हैं । लेकिन इ लोग Voiced अउर Voiceless Consonants का सारा मतलब ही बदल कर रख दिया है ।
अगर आप ऑल्चिकि का अध्ययन करेंगे, तो कहीं न कहीं से आपके जेहन में इ बात आएगा, कि इ लोग  इ नहीं मानते कि भाषा के अनुसार लिपि बनता है, ना कि लिपि के अनुसार भाषा को बनना पड़ता है । अउर एही दु:खद बात है । इ  लोग एगो voiceless /h/ का कल्पना किए, अउर अब इ मानने लगे कि संताली भाषा में voiceless /h/ frequently occur होता है !!        
लेकिन कहना नहीं होगा कि इस कृत्रिम मैकेनिज्म से इ लिपि बड़ा ही बोझिल, विचित्र अउर नकली बन गया है ।

नासिक्यता : अनुनासिकता/ अनुस्वारता
हम जानते है कि अनुनासिक (नासिका से उच्चरित होने वाले) ध्वनियाँ को देखाने के लिए कुल पाँच व्यंञ्जन वर्ण हैं । इ हैं :- ङ, ञ, न, ण, म । परिवर्धित रोमन में ṅ, ǹ, N, ṇ, M । साथ ही हम इ भी जानने हैं कि स्वरों के साथ अनुस्वार लगाकर भी देवनागरी में अनुनासिक ध्वनियों को दिखाया जाता है । परिवर्धित रोमन में यही काम ‘  ̃’  चिन्ह करता है ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा (अब जब आप ऑल्चिकि का विचित्रता जान गए है, तो नहीं भी हो सकता है) कि ऑल्चिकि में अउर एगो व्यंञ्जन वर्ण है जिसके साथ अनुनासिक ध्वनि देखाया जाता है । देवनागरी अउर  परिवर्धित रोमन में इस वर्ण का जरूरते नहीं है । इ 
cancuminal, apparently only ḍ. A CANCUMINAL ṇ IS NOT FOUND STANDING ALONE, for which reason some writers never mark it. E.g., kaṇṭa, biṇṭhi, gaṇḍke, oṇḍga, kuṇḍlaṅ, muṇḍhạt̓, kohṇḍa, phuphṇḍa, bhosṇḍo. 
ṇ is not found initial or FINAL, only as shown, a medial prefix to another cancuminal.” 
आराण, चॅणॅ, सिणिच्, आणगो, लागणे, आघाण, किसण, चिकण, नणी, ऍटकेटॉणॅक्, मॅणहॅंत्, मुण     
इन शब्दों का सही रोमन (मॉडिफाइड) अउर देवनागरी रूप :-
arãṛ, ce̠ṛẽ̠, siṛĩc̓, ãṛgo, lagṛẽ̠, aghãṛ, kisạ̃ṛ, cikạ̃ṛ, nạṛi, eṭke̠ṭõ̠ṛẽ̠k̓, mẽ̠ṛhe̠t̓, mul.
आरांड़, चॅड़ें, सिड़िंच्, आंड़गो, लागड़ें, आघाँड़, किसँड़, चिकँड़, नड़ी, ऍटकेटॉड़ेंक्, मेंड़हॅत्, मुल 
       http://wesanthals.tripod.com/DK-2009/DK-March-16-31-09.html से लिए हैं :--
  
 http://wesanthals.tripod.com/  साइट का डिक्शनरी  
(http://wesanthals.tripod.com/sitebuildercontent/sitebuilderfiles/sed.pdf) देखेंगे, तो आपको

एगो प्रश्न चिन्ह
एक सवाल उठता है, क्या इसके लिए उस क्षेत्र विशेष का बोली भी तो
दोषी नहीं है । हमको लगता है, बहुत हद तक । उधर का बोली पर आज से सौ साल पहले बोले कैम्पबेल बोले थे “Northern Santali .. .. .. .. is more polished than Southern Santali. The former is, therefore, regarded as the Standard, and Southern Santali, .. .. as a dialect .. of it”
अउर सौ साल बाद  डॉ. अरुण घोष अपना किताब ‘Santali : A look ino Santal Morphology में लिखते हैं :-
 “In the southern dialect there is also a tendency .. .. of pronouncing /e/ as [i] and /o/ as [u]. In examples the pronunciation of /e/ as [i] and /o/ as [u] has been established; e.g. abin ‘you two’ (cp. aben in Northern Santali), unku ‘they’ (cp. onko in N. S.).”

उपसंहार :-
तो हम पाते हैं कि अनेक दोषों के कारण ऑल चिकि को वैज्ञानिक लिपि कदापि नहीं कहा जा सकता । इन दोषों का संक्षिप्त पुनरावृति निम्न है :-
1     1.     ऑल चिकि का आविष्कार सिरफ उड़ीसा प्रांत के मयुरभंज जिले में  बोले जाने वाले संताली के दक्खिनी बोली के लिए हुआ था ।
2     2.     लिपि का आविष्कार नहीं होता, बल्कि उसका क्रमिक विकास होता है ।
3     3.     ऑल चिकि का वर्णमाला  दोषपूर्ण है ।
4     4.     वर्णों का लिखित अउर उच्चरित रूप अलग-अलग है । 
5     5.     ऑल चिकि में जमकर डायाक्रिटिक चिन्हों का व्यवहार होता है ।
6     6.     कई ध्वनियों के लिए लेखिमों का अभाव ।
7     7.     दो अलग-अलग ध्वनियों के लिए एक ही लेखिम ।
8     8.  दो अलग-अलग वर्ण या वर्णयुग्म के द्वारा एक ही ध्वनि को देखलाना ।     

9       
      निष्कर्ष :-
     इस तरह हम देखे कि चूँकि ऑल चिकि पूर्णतया अवैज्ञानिक एवं दोषपूर्ण है । अत: हमरा विचार है कि उत्तरी हो या दक्खिनी, संताली भाषा के लिए सबसे उपयुक्त लिपि परिवर्धित रोमन संताली लिपि ही है, खास तौर से इ देखते हुए कि बांगला देश में बहुत संताल है । 
     परिवर्धित रोमन संताली लिपि ‘परफेक्ट’ है । किसी लिपि में डायाक्रिटिकल मार्क्स होने से ऊ ‘इम्परफेक्ट’ नहीं हो जाता ।
देवनागरी लिपि का सटीकपन अउर व्यवहारिकता फिलहाल रोमन संताली जितना नहीं है । इसके बावजूद, अगर संताल लोग सिरफ झारखण्ड अउर बिहार में ही बसते तो हम देवनागरी का ही वकालत करते काहेकि इ व्यक्तिगत रूप से हमको बहुत प्रिय होने के साथ-साथ काफी आसान भी है । लेकिन झारखण्ड – बिहार के बाहर के लोगों के लिए हिन्दी/ देवनागरी एक अतिरिक्त बोझ है, ऑल्चिकि के तरह ही ।  
परिवर्धित रोमन संताली लिपि किसी भी व्यक्ति को, जो संताली भाषा जानता हो, अउर रोमन अक्षरों से परिचित हो, पन्द्रह मिनट में हमेशा के लिए सिखाया जा सकता है, काहे कि उसको सिरफ छह-सात नए चिन्हों का प्रयोग सीखना है । हमको लगता है कि आज के कम्पूटरही दुनिया में हर साक्षर व्यक्ति के लिए वइसे भी रोमन अक्षरों से परिचित होना अवश्यम्भावी हो गया है । 

ऑल चिकि का सीमित जनाधार
चूँकि ऑल चिकि पूर्णतया अवैज्ञानिक एवं दोषपूर्ण है, अब हमें इ देखना बाकी रह गया है कि क्या ऑल चिकि का कोई जनाधार भी है ?? हम जानते हैं कि ऑल चिकि का प्रचार सिरफ उड़ीसा के कुछ जिलों में, झारखण्ड के सिंहभूम इलाके में और बंगाल के कुछ दक्खिनी क्षेत्र में है ।   
यहां पर हम आपको कोपेनहेगेन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर एंडरसन के उन निष्कर्षों से अवगत कराना चाहेंगे जिस पर ऊ पश्चिम बंगाल में स्कूली शिक्षा के माध्यम के बारे में पहूँचे थे:-   
“जहाँ तक लिपि का मामला है, वही लिपि बताई जानी चाहिए जो उसके घर में अमल में है । यदि इन्हे दूसरी लिपि बताई जाती है तो यह साक्षर परिवारों के बच्चों को भी पहली पीढ़ी के सीखने वालों जैसा बना देगी .. .. मेरा सुझाव यह है कि जो लिपि वयस्क संतालों के बीच ज्यादा प्रचलित हो, उसी की अनुशंसा की जाए ।
फिलहाल ओलचिकी को स्कूली शिक्षा के माध्यम के लिए अनुशंसित न किया जाए क्योंकि किसी भी राज्य की बहुसंख्यक संताल आबादी के बीच ओलचिकी में व्यापक स्तर पर वयस्कों को शिक्षित नहीं किया गया है ।”
उन्होंने ऑल्चिकि के बारे में इ भी कहा है :-   
“1967 से आदिवासी सोशियो-एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन (एएसईसीए) ओलचिकी लिपि का प्रचार-प्रसार करते रहे हैं । ओलचिकी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए एएसईसीएद्वारा किए गए महत्वपूर्ण काम करने के बावजूद पिछले 15 वर्षों से पश्चिम बंगाल में ओलचिकी लिपि जानने वाले शिक्षकों का अभाव था । झारखण्ड और उड़ीसा के संक्षिप्त दौरे से जितना मैं जान सका, वह यह कि इस लिपि ने यहाँ व्यापक स्तर पर पाठक नहीं बनाए हैं । इससे यह पता चलता है कि ओलचिकी लिपि में व्यापक स्तर पर लोगों को साक्षर नहीं किया गया है । ..
पश्चिम बंगाल के उन इलाकों में, जहाँ के निजी अनुभव मेरे पास हैं, .. .. गाँव के वयस्क, जो बंगला लिपि से वाकिफ हैं, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के लिए ओलचिकी लिपि सीखने में कोई रुचि नहीं दिखाई ।”          

अउर आखिर में
देखिए, ओडिसा सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के समिति ने ऑलचिकी का कैसा छीछालेदर किया है ।
“Roman script is used to write languages in Africa, Latin America and parts of India and Orissa. Chinese script is the bridge among mutually unintelligible languages/ dialects counted under Chinese. A single script is read differently by speakers of different dialects and holds them together. In India, Sanskrit is written in all the scripts of India. Konkani and Santali are written in five scripts each. Sindhi is written in Nagari and Perso-rabic, Hindi, Marathi and Sanskrit sharing one script, Nagari, Bengali, Assemese share one script each with minor 14 modifications. So are Telugu and Kannada. Therefore need for two scripts for two different languages is not a necessity.”
“Having separate script is no advantage.”

“Experimentally Santali language with Ol Chiki script was introduced in 30 schools. According to the Kundu Report the experiment has failed.”
“First of all it is not true that “At present the Santals all over India have started using the scripts” A very miniscule section of Santals have opted for Ol-Chiki in Orissa.The roadside urban and suburban centers do not want Ol Chiki .They prefer Oriya and Bengali. In Bihar Santali is written in Nagari.  The Govt. of Orissa (Dept. of Education) vide their resolution No.XIXEM 15/91-7710 dt. 25/2/91 decided to introduce the teaching of Santali language in Ol Chiki script on an experimental basis, as an additional language at the primary stage” in 30 primary schools of Mayurbhanj, Keonjhar and Sundargarh district. As follow up to this resolution teachers were selected, Ol Chiki primers were prepared and teaching of Santali language in Ol Chiki script was introduced in 30 schools (20 in Mayurbhanj, 5 in Keonjhar and 5 in Sundargarh district) from May 1992.
The experiment failed. The report of the Committee set up by the Govt. of Orissa came to the conclusion that the parents “are found to believe in competition and tuition. They are more in favour of learning Oriya and English. Learning their own language and script is secondary for them (P.13)” It is most unfortunate that emphasis on the new script takes parents away from their own language.”

“The Govt. is committed to maintain the language and not necessarily to be printed in Ol Chiki script.”

“In many of the schools teachers spoke of the Ol Chiki language. Almost everywhere we corrected them saying that Ol Chiki is the script and Santali is the language. We got the impression that their training is defective. They are told precious little about the tribal language and culture.”

“The Santals remaining in different states write their languages in different scripts. These facilities link the home language with the dominant state language. It helps them participate in the development and reconstruction of the State at the earliest.”

“The discussion with ASECA Rairangpur representatives was revealing. They have a single point agenda-Santali should be taught through Ol Chiki . They made two points. a. Santali pronunciation can only be captured through Ol Chiki script. b. Communication among Santals living in different states is only possible through a single script.
It was pointed out to them that Sanskrit survived because it was written in various  scripts of the country. All the scripts captured Sanskrit pronunciation. More over Telugu and Kannada, Bengali and Assemese, Sanskrit, Marathi and Konkani scripts are written in their respective regions. Nobody says Telugu is written in Kannada script. There is no reason why a modified Oriya script cannot be called the Santali script in Orissa.”

“We met some intellectuals in Baripada. One of them said that since one generation is to be educated in the new script to teach the next and new books are to be written the Santals will be 50 years behind the time.
Assuming that the new script is adopted the literacy rate will go down immediately. This is another validation of the statement that the Santal will go backwards by 50 years, if a new script is introduced at this stage.”

“The Committee is of opinion that any language can be written in any script and there is no bar. Pronunciation of some words in a language does not hamper the basic character of a language, or else English would not have been the language of world, and by now, due to bad pronunciation, it would have lost its chastity. Instead by adopting many new words from many culture, English become the richest language for its assimilative quality.”

पूरा रिपोर्ट यहाँ देखें :-

इसे भी देखें :-

  


नोट :- इस आलेख का संताली अनुवाद बहुत जल्द आपके सामने होगा ।
Noṭ :- Noa o̠no̠l reak̓ to̠rjo̠ma ạḍi usạra apeǹ samaṅa pea.




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