बुधवार, 14 सितंबर 2011

आदिवासी धर्म




केंद्र शीघ्र लागू करे आदिवासी धरम कोड
December 22, 2009
रांची : आदिवासी धरम परिषद ने कहा है कि केंद्र सरकार आदिवासी धरम कोड शीघ्र लागू करे। इसको ले सभी पार्टियों व संगठन से जुड़े आदिवासी समुदाय से एक मंच पर आने का आह्वान किया गया है। परिषद की रविवार को नगड़ा टोली सरना भवन में डा. करमा उरांव की अध्यक्षता में बैठक हुई। करमा उरांव ने कहा कि धर्म कोड के मामले में किसी प्रकार का समझौता मान्य नहीं होगा। आदिवासी धरम परिषद 2011 के जनगणना प्रपत्र में आदिवासी धरम कोड को शामिल कराके ही दम लेगी। बैठक में 24 फरवरी को प्रस्तावित संसद घेराव की रणनीति पर भी विचार किया गया। बैठक में रांची की महापौर रमा खलखो, कांग्रेस नेता देवकुमार धान प्रेमशाही मुंडा, जीतनाथ बेदिया, मंजुला टोप्पो, निरंजना टोप्पो, बबली लिण्डा, तारा भगत, कविता टोप्पो, प्रकाश उरांव, बहादुर पाहन, पारस लकड़ा व अन्य लोग उपस्थित थे।

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आदिवासी धर्म कोड को ले संसद घेराव की चेतावनी
January 30, 2010
खलारी, आदिवासी धर्म परिषद के बैनर तले राजकुमार की अध्यक्षता में हेंजदा कुटकी गांव में क्षेत्र के आदिवासियों की बैठक हुई। इसमें आदिवासी धर्म कोड को लेकर अगले माह की 24 तारीक को दिल्ली में संसद का घेराव करने की चेतावनी दी गई है। परिषद की केंद्रीय कमेटी के पदाधिकारी जोखन भगत, बिमल कच्छप, पारस लकड़ा व मुन्ना टोप्पो ने आदिवासी धर्म कोड के बारे में विस्तार पूर्वक विचार रखा। वक्ताओं ने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में सात सौ प्रकार के आदिवासी समुदाय एवं जातियां पाई जाती है। अलग-अलग राज्यों में आदिवासियों के लिए अलग-अलग धरम का नाम दिया गया है। जिसमें सरना, सारी, आदि, गोड़ी, मील, मीणा, अका, ढोली पोलो आदि शामिल है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध समुदाय के लोग अलग-अलग धरम कोड से जाने जाते है। आदिवासियों की भी अपनी धार्मिक मान्यता है। आदिवासी पूरे भारत वर्ष में प्रकृतिपूजक है और आदिकाल से पौराणिक रीति-रिवाज पर विश्र्वास करते है। तो आदिवासियों के लिए अलग धरम कोड क्यों नही है। केंद्र सरकार से आदिवासियों के लिए अलग धरम कोड तय करने के लिए 24 फरवरी को परिषद संसद का घेराव करेंगी। बैठक का संचालन महेंद्र उरांव ने किया। बैठक में करमा लोहरा, जगरनाथ उरांव, रंथू उरांव, देवपाल मुंडा, देवा मुंडा, बालेश्र्वर उरांव, राजेंद्र उरांव, उपेंद्र उरांव, नागेंद्र कृष्णा गाड़ी, विश्राम टाना भगत, काले उरांव, सुरेश उरांव व बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।

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धरम कोड को ले चलाया जा रहा अभियान
February 4, 2010
अनगड़ा : धरम कोड लागू करने को लेकर प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में जन-जागरण अभियान चलाया जा रहा है। इसका नेतृत्व आदिवासी जन-परिषद के महासचिव प्रेम शाही मुंडा कर रहे है। अभियान टाटी सिंगारी, जोन्हा, गेतलसूद, नवागढ़, कामता, कुच्चू आदि गांवों में चलाया गया। इस दौरान 24 फरवरी को दिल्ली कूच करने का आह्वान किया गया। इससे पूर्व 16 फरवरी को राजभवन का घेराव किया जाएगा एवं 24 फरवरी को संसद का घेराव करेंगे। शाही ने बताया कि हमारी मुख्य मांग आदिवासी धर्म कोड को लागू करना है। साथ ही 2011 के जनगणना में धर्म कोड लागू हो। अभियान में एतवा बेदिया, बालेश्र्वर बेदिया, जगदीश पाहन, गोपाल बेदिया, राजेश उरांव, सुरेंद्र मुंडा, रंजीत उरांव, प्रकाश, सुमन कच्छप, मनोज महली आदि शामिल है।

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धरम कोड को ले दिल्ली जाम करेंगे आदिवासी
February 9, 2010
रांची, : उत्तर प्रदेश के किसानों के बाद देश के आदिवासी दिल्ली जाम करेंगे। जनगणना प्रपत्र में आदिवासी धरम कोड कालम की मांग को लेकर देश के 50 हजार आदिवासी दिल्ली कूच करेंगे। इस क्रम में 24 फरवरी को सूबे के तकरीबन 10 हजार आदिवासी दिल्ली में जंतर-मंतर के समक्ष धरना देंगे। आदिवासी धरम परिषद के संयोजक देव कुमार धान ने बताया कि परिषद के बैनर तले आयोजित इस धरना में झारखंड के अलावा असम, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों से लोग भाग लेंगे। उन्होंने बताया कि देश भर में आदिवासियों की लगभग 750 उप जातियां हैं, जिसके 61 धर्म कोड हैं। सभी धर्म कोड को एक कर आदिवासी धरम कोड कालम का प्रावधान करने की मांग की जा रही है। उन्होंने बताया कि अगर समय रहते उनकी मांग नहीं मानी गई तो देशव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा। झारखंड में देव कुमार धान, असम में सुरेश उरांव, बिहार में अरविंद उरांव, छत्तीसगढ़ में वीआर ध्रुव, पश्चिम बंगाल में बिहारी उरांव को इसका प्रभारी बनाया गया है। झारखंड में भी जिलावार प्रभारी बनाए गए हैं, जिनके नेतृत्व में आदिवासी दिल्ली जाएंगे। खूंटी में दामो मुंडा, चाईबासा में अंतू हेम्ब्रोम, लातेहार में दिनू उरांव, लोहरदगा में महादेव उरांव, गुमला में अशोक कुमार भगत, पूर्वी सिंहभूम में रामचंद्र मुर्मू, संथाल परगना में सरजन हंसदा, रांची में जयंत टोप्पो को प्रभारी बनाया गया है।

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संसद घेरने दिल्ली गए सूबे के आदिवासी
February 22, 2010
रांची, : आदिवासी धरम कोड की मांग को लेकर सूबे के आदिवासियों का दिल्ली कूच करने का सिलसिला शनिवार से ही शुरू हो गया। शनिवार को परिषद के संयोजक देव कुमार धान दिल्ली चले गए। रविवार प्रेम शाही मुंडा के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। उल्लेखनीय है कि जनगणना प्रपत्र में आदिवासी धरम कोड कालम की मांग को लेकर देश के लगभग 50 हजार आदिवासी 24 फरवरी को दिल्ली में जंतर-मंतर के समक्ष धरना देंगे। झारखंड से इसमें दस हजार से अधिक आदिवासियों के भाग लेने की उम्मीद है। आदिवासी धरम परिषद के बैनर तले आयोजित होनेवाले इस कार्यक्रम में झारखंड के अलावा असम, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों से आए लोग भाग लेंगे। परिषद के संयोजक देवकुमार धान ने बताया इसमें देशभर के आदिवासी सांसदों व विधायकों से भाग लेने की अपील की गई है। उन्होंने बताया कि देशभर में आदिवासियों की लगभग 750 उप- जातियां हैं, जिनके 61 धरम कोड हैं। उन्होंने बताया कि सभी धर्म कोड को एक कर आदिवासी धरम कोड कालम का प्रावधान करने की मांग की जा रही है। सूबे से अगला दल सोमवार को दिल्ली के लिए रवाना होगा। ये लोग लंबे समय से आदिवासी धरम कोड कालम की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर आदिवासियों का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री समेत राज्य के राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंप चुके हैं। इधर, रांची महानगर सरना प्रार्थना सभा ने इसी मांग के तहत 24 फरवरी को रांची में राजभवन के समक्ष धरना देने का निर्णय लिया है। समिति की रविवार को आमसभा हुई। सभा में वक्ताओं ने आदिवासियों के धरम कालम में सरना जोड़ने की मांग की। बैठक में रवि तिग्गा, मोनू उरांव, प्रभु खलखो, सुनील गाड़ी, प्रदीप तिर्की, दिपू गाड़ी व अन्य लोग उपस्थित थे।

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राज्यसभा में भी उठेगा धर्म कोड का मुद्दा
April 7, 2010
संजय कृष्ण, रांची : राज्यसभा सांसद व पद्मश्री डा. रामदयाल मुंडा आदिवासी धर्मकोड का मामला राज्यसभा में उठाएंगे। उन्होंने कहा कि यह दस करोड़ आदिवासियों की पहचान और अस्मिता का सवाल है, जो आजादी के बाद से ही इस संकट से जूझ रहे हैं। वे गलत पहचान के शिकार हो रहे हैं। उन्हें कभी हिंदू, कभी ईसाई, कभी बुद्ध से जोड़ दिया जाता है, जबकि धर्मातरित आदिवासियों की बात करें तो उनकी कुल जनसंख्या दो करोड़ हो सकती है। आठ करोड़ आदिवासियों को किस खाते में रखा जाए, यह बड़ा संकट है। उन्होंने कहा कि सामाजिक स्तर पर उनकी पहचान जनजातीय- आदिवासी के रूप में है, लेकिन धर्म के मामले में उनकी कोई पहचान नहीं है। उन्हें किसी न किसी के साथ नत्थी कर दिया जाता है। आदिवासी प्रकृति पूजक हैं, प्रकृति के सहचर हैं इसलिए इनकी अलग पूजा पद्धति है। इन्हें अन्य की जगह आदिधर्म की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए। ध्यान रहे कि धर्म कोड को लेकर संघर्ष बहुत पुराना है। दो साल पहले भी इसको लेकर बैठक हुई थी, लेकिन बैठक में कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुवा रहे डा. वीपी केशरी कहते हैं कि आदिवासियों का अपना धर्मकोड होना ही चाहिए। इसके लिए सभी को मिल-बैठकर काम करना चाहिए। अलग-अलग धरना-प्रदर्शन व जुलूस से समस्या का समाधान नहीं होगा। आदिवासी समुदाय का एक वर्ग सरना धर्म का हिमायती है तो एक आदिधर्म का। सरना चूंकि पूजास्थल का नाम है, इसलिए कुछ लोग इसे लेकर आपत्ति जताते हैं। इसके साथ ही संताली, मुंडारी, हो समाज में पूजास्थल को दूसरे नामों से पुकारा जाता है इसलिए, सरना धर्म जाति विशेष से संबद्ध हो जाएगा। फिर, झारखंड से बाहर दूसरे राज्यों के आदिवासियों को किस श्रेणी में रखेंगे?

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आदिवासी धर्म कोड को ले आंदोलन होगा तेज
April 13, 2010
रांची : जनगणना परिपत्र में आदिवासी धर्म को शामिल करने की मांग को ले रविवार को महाराष्ट्र के नागपुर में महाराष्ट्र गोंडवाना विकास समिति की ओर से बैठक आयोजित की गई। बैठक में आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया। उक्त बैठक में झारखंड से देव कुमार धान, करमा उरांव, अंतु हेम्ब्रम, अरविंद उरांव ने भाग लिया। इसमें छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश से लोग भी शामिल हुए। लंबी परिचर्चा और विचार-विमर्श के बाद इस बात पर सहमति बनी कि देशभर के आदिवासियों को एकजुट होना चाहिए। क्योंकि देश में आदिवासियों की आबादी 12 करोड़ है और आबादी के हिसाब से तीसरा स्थान रखती है। बैठक में इस बात को लेकर चिंता जाहिर की गई कि आदिवासियों को कभी हिंदू के साथ जोड़ दिया जाता है कभी ईसाई, बौद्ध, जैन के साथ। जबकि आदिवासी मूलत: जीववाद, जड़वाद व प्रकृति के पूजक हैं। इनका अन्य धर्मो से अलग अस्तित्व है। इस आंदोलन को तेज करने के लिए अगली बैठक रायपुर में होगी।

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आदि धर्म पर बनी सहमति
May 3, 2010
रांची : छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार के आदिवासी प्रतिनिधियों ने जनगणना 2011 में आदि धर्म को शामिल करने पर अपनी रजामंदी दिखाई। रानी सति मंदिर में शनिवार को आयोजित तीन चरणों की बैठक के बाद आदिवासी प्रतिनिधियों ने यह निर्णय लिया। कहा कि देश के आदिवासी इस मुददे पर एकजुट हों। बैठक के अंतिम चरण में बसंत कुमार उरांव ने बताया कि राजपड़हा के प्रतिनिधियों व भारतीय जनगणना बोर्ड के साथ हुई चर्चा यह स्पष्ट हुआ कि आदिवासी जनगणना में आदि धर्म का अलग कालम चाहते हैं। गुजरात, राजस्थान व आंध्रप्रदेश के आदिवासी पूर्व से ही आदि धर्म लिखते आए हैं। कहा गया कि हिंदू विधि की धारा दो में स्पष्ट किया गया है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं। कई राज्यों के सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासियों को इस बात की जानकारी नहीं है उनके बीच विभिन्न प्रचार माध्यमों से जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इसके लिए शीघ्र ही रणनीति तय की जाएगी। भारत में आदिवासियों की कुल संख्या लगभग नौ करोड़ है। आदि धर्म कालम में ही इनकी भलाई छीपी है। बैठक में रिझू कच्छप, भीख राम भगत, पृथ्वी चंद्र हेम्ब्रोम, यमुना उरांव समेत 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने शिरकत की।

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आदि धर्म को मान्यता मिले
July 15, 2010
रांची : पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा मंगलवार शाम सवा छह बजे प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मिले. उन्होंने पीएम से आदि धर्म को संवैधानिक मान्यता देने की मांग की.
उन्होंने कहा कि देश में 10 करोड़ लोग आदि धर्म को मानते हैं. डॉ मुंडा ने फोन पर बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि आदिवासियों की परंपरा संस्कृति, रीति-रिवाज, आदि धर्म से जुड़े हैं. ये इनकी पहचान भी हं.
सभी धर्मो का धर्म कोड है. संविधान में इन्हें मान्यताप्राप्त है, परंतु गैर ईसाई आदिवासियों के धर्म को मान्यता नहीं दी गयी है. इससे उनकी पहचान पर संकट उत्पन्न हो गया है. उनकी अस्मिता खतरे में है. 
डॉ मुंडा ने देश के विभिन्न हिस्सों में बंटे अलग-अलग आदिवासी समूहों की परंपरा, संस्कृति, रीति रिवाज और धर्म पर आधारित स्वलिखित पुस्तक प्रधानमंत्री को भेंट की. डॉ मुंडा के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने बहुत गंभीरता से उनकी बातें सुनीं और आश्वस्त किया कि यथोचित कार्रवाई करेंगे.

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