रविवार, 14 अगस्त 2011

कवि श्री बिनोद सोरेन की एक और संताली कविता

कुल्ही धुड़ी रे हूल

बिर हसुर ञुहुम आकान, कुल्ही पिण्डऽ रेञ दुड़ुप् आकान
....
गिदरऽ को गातेक् लगित् को जारवाव आकान,

गोटा केदाको हूल को गातेक्आ ...
बार थार रेको पाँते एना,
मित् नाखा दॉ साहेब पाल्टिन

आर एटाक् दॉ सिदो – कान्हु रेन हुलगरियाको . . .


अडी आचका, हूल, हूल को किकयव केदा,
गाड गुड को तापामॉक् कान ताँहेन,

ऑकॉय टाङ चॉए हासो आचोयेन, राक् – राक् तॅयॅ बेरेत् एना,

मॅत् दाक् जॉत् – जॉत् तॅयॅ मॅन केदा,


हेन्दा या, तेहेञ दॉम सिदो आकान तेम
आञझाट एम तावाक् हासो आचॉ केदेञा,
गापा इञ होंञ सिदो आ,
आर आम होंञ तावाक् हासो आचॉ मेया ...

बाङ टारहाव दाड़ेयात् ते पिण्डऽ फेड ओनको ठेन इञ चालाव एना,
साप् सामटाव जारवा कातेञ मेताक् कोआ,
आपॅ दॉ जॉतॉ गे सिदो, जॉतॉ गे कान्हु,
बीर बान्टा रेन भायादी दॉ बाको तापामा ...

* * *

KULHI DHUṚI RE̠ HUL

Bir hạsur ǹuhum akan, kulhi pinḍ reǹ duṛup akan . . .

Gidrạ ko gatek̓ lagit̓ ko jarwao akan,

Goṭa keda ko Hul ko gate a . . .

Bar thar reko pante ena,

Mit̓ nakha do sahib paltin

Ar eṭak̓ do̠ Sido-Kạnhu ren hulgạria ko . . .

Ạḍi acka, Hul. Hul ko kikyạo keda,

Gaḍ guḍ ko tapamok̓ kan tãhen,

Okoe taṅ co ye hasu aco yen, rak̓-rak̓ teye beret̓ ena,

Met̓ dak̓ jot̓-jot̓ teye men keda,

Henda ya, teheǹ do̠m Sido akan tem

Anjhaṭ em tawak̓ haso aco kedeǹa,

Gapa iǹ hõ̠ǹ Sido a,

Ar am hõ̠ǹ tawak̓ haso aco mea . . .

Baṅ ṭarhao dareat̓ te pinḍ khon phed onko ṭhen iǹ calao ena,

Sap̓ samṭao jarwa kateǹ metak̓ koaǹ,

Ape̠ do̠ jo̠to̠ ge Sido, joto ge Kạnhu,

Bir banṭa ren bhayadi do bako tapama . . .

* * *

यह कविता उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार – सर्वश्री सुन्दर मनोज हेम्ब्रम, डॉ. संतोष कुमार बेसरा, रंजीत कुमार हंसदा

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English translation:

HUL IN THE DUST OF THE KULHI1

The darkness of the evening has set in, Am sitting on the Pinḍạ2 of the village street . . .

Children have gathered to play,

They decided to play ‘Hul’ . . .

They lined up in two rows,

On one side the British platoon

And the other Sido-Kanhu’s Hulgarias3 . . .

Suddenly, they screamed “Hul! Hul!”,

Bam! Blam! They were coming to blows,

One of them got hurt, stood up sobbing,

Wiping his tears, he said,

O, Ye! Since, today you are Sido

You threw me down and hurt me,

Tomorrow, I, too, will enact Sido,

And will throw down and hurt you . . .

I could not resist, so I got down the Pinḍ and went to them,

Got them, gathered them all and told them,

You all are Sidos, all Kanhus,

Bretheren of Valiant Heroes do not clash amongst themselves . ..

* * *

1 Kulhi – Sạntal Village Street

2 Pinda – The raised platform along the external walls of the Sạntal mud houses used for sitting

3Hulgarias - Sạntals who participated in Hul

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Translation: Rạnjit Kumar Hãsdak̓

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कुल्ही1 की धूल में हूल

शाम का अंधेरा घिर आया है, कुल्ही में पिण्डऽ2 पर बैठा हूं मैं

बच्चे खेलने को जमा हुए हैं

तय हुआ खेलेंगे हुल’...

खड़े हो गये वे दो कतारों में,

एक तरफ गोरों की पलटन

दूसरे सिदो-कान्हु के हूलगरिया3

अचानक, हूल ! हूल ! वे चीख पड़े,

धम-धड़ाम वे लड़ पड़े,

कोई जोरों से पिट गया, उठ खड़ा हुआ रोते-रोते,

वह बोला आँसू पोंछते- पोंछते,

काहे बे, आज सिदो बने हो तो

खूब पटक के दर्द दिए हो,

कल मैं भी सिदो बनूंगा,

और तुम्हें भी पटक के दर्द दूंगा

अपने को रोक नहीं पाया पिंडऽ से उतर उनके पास गया,

पकड़ समेट इकट्ठा कर उन्हें बताया,

आप सब ही सिदो, सब ही कान्हु,

बहादुरों के भाई-बंद आपस में लड़ा नहीं करते ...

* * *

1 कुल्ही – संताल गाँव के बीचोंबीच गुजरती गली/ सड़क

2 पिंडऽ - संताल घरों की बाहरी दीवारों के साथ बनी बैठने की जगह

3 हूलगरिया - जिन्होंने हूल में भाग लिया

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अनुवाद: श्री सुन्दर मनोज हेम्ब्रम और ख़ाकसार

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डॉ. संतोष कुमार बेसरा – कविता में बाल्य रस और वीर रस का सही सम्मिश्रण है । संताली साहित्य में बिनोद सोरेन की कविताओं के सिवा इस तरह की रचना और कहीं नहीं देखा है ।

1 टिप्पणी:

  1. बच्चों के खेल के माध्यम से दिया गया सार्थक और प्रेरक संदेश... विनोद सोरेन जी की अनुदित कविता पढ़वाने के लिए आभार... सुकुमार हेम्ब्रम जी और सुंदर मनोज हेम्ब्रम जी को इस सुंदर अनुवाद के लिए बहुत बहुत धन्यवाद... यही टिप्पणी मैंने फ़ेसबुक पर भी दी थी. आपसे अनुरोध है कि कृपया आप वर्ड वेरिफिकेशन को हटा लें...आभार.

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