शनिवार, 27 अगस्त 2011

पिक्चर ... ... ... अभी बाकी है, मेरे दोस्त !!! (विस्तृत संस्करण)



लेखक – सुकुमार
1.   
    कथा - आमुख
साथियों, कहानी के इस विस्तृत संस्करण के तीन लेखक हैं – सर्वश्री अन्द्रेयास टुडु, सुन्दर मनोज हेम्ब्रम और आपका सेवक । पहले दो नामों का परिचय देना हम जरूरी नहीं समझते काहे कि इन दोनों के विषय में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाना है ।  कहानी का शुरुआत फेसबुक पर श्री टुडु के अपने हालात पर वक्तव्य देने और उस पर कुछ दोस्तों के प्रतिक्रिया से हुआ ।  आइए, देखते हैं कि क्या हुआ था ?
Andreas Tudu:- CAUTION : DEAR FRIENDS ! SOME CROOK IS SENDING REPORTEDLY OFFENSIVE MESSAGES TO MY FRIENDS TO DEFAME ME... KINDLY IGNORE IT... I AM PAINED TO DEACTIVATE MY ACCOUNT BY TOMORROW..... ANDREAS TUDU
Sunder Manoj Hembrom:- कब, क्यूँ, कहाँ...? और कौन है ये...बदमाश ? लगता है इंस्पेक्टर "झाडे झोन सोरेन"(ओ.एस.डी, क्राईम-ब्रांच) से पाला नहीं पड़ा है...! सावधान !
"एतबार नहीं करना...किसी से प्यार नहीं करना."--इंस्पेक्टर झाडे झोन सोरेन
सुकुमार हेम्ब्रम:-  जो भी हो, लगता है आपको अपने अगले मिस्ट्री नॉवेल के लिए मसाला मिल गया ! अगला बार इंस्पेक्टर "झाडे झोन सोरेन"(ओ.एस.डी, क्राईम-ब्रांच) (Andreas Tudu के लिखे एक Crime thriller के नायक) अनुसंधान करेंगे कि किसने जाहेर-खण्ड के मूर्खमंत्री को धमकी भरा ई-मेल भेजने के बाद उसका क़त्ल कर दिया ?
हीं ऊ मिस लिली फ्रॉम सिसिली तो नहीं ?
Andreas Tudu:-  HARI POTOR (Andreas Tudu की लिखी एक हॉरर स्टोरी) wala Janguru (ओझा) Dibu Soren se anurodh karna padega ki wo Sunum-Pan'ja (दोषी को ढूंढ़ने की एक विधि ) kar zalim ko khoj nikale. Sarjom-Sakam (शालपत्र) to mil jayega lekin UTIN" SUNUM (सरसों का तेलइससे और शालपत्र से दोषी को ढूंढ़ा जाता हैbahut mahnaga hai. Sabse chanda mang kar kharida jayega!
श्री Ujjwal Hembrom उवाच :- मैं जब छोटा था, तब गांव में कुछ चोरी हो जाता था तो सुनुम पांजा के अलावा टाकटाकीका भी इस्तेमाल किया जाता था. जान गुरु के हाथ में लाठी फुदकती हुई मुजरिम के पास जाती थी. मेरा विचार है ताड़ीवाले बाबा को भी इसका ज्ञान है. उसी से टाकटाकी चलवाते हैं. जय ताड़ीवाला बाबा की!
Andreas Tudu:- इंस्पेक्टर झादे जॉन सोरेन से बचना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है । एक संदिग्ध व्यक्ति का पीछा उसने इंटर-सिटी एक्सप्रेस में रांची से किया,वह ब्यक्ति जसीडीह स्टेशन पर उतर कर, जसीडीह-दुमका पैसेंजर में चढ़ गया । उसके हाथ में सिर्फ एक पतला-सा बैग जैसा कुछ था । इंस्पेक्टर झादे ने तुरंत अनुमान लगा लिया, हो न हो, अंदर में जरूर कोई लॅपटॉप है, और उसके इरादे काफी खतरनाक हैं । वह अजनबी दुमका स्टेशन में उतर कर, पैदल ही कुमारपाड़ा की ओर रवाना हो गया । हालांकि वह शातिर, चालाक और चतुर लग रहा था, लेकिन बिलकुल ही फटीचर था, वह फटा चप्पल पहन कर, ऑटो या रिक्शा में
न बैठकर पैदल ही जा रहा था,शायद उसकी जेब में बीड़ी पीने के लिए भी पैसे नहीं थे. हलकी बूंदा-बांदी हो रही थी । इंस्पेक्टर झादे ने रेन-कोट पहन कर सर पर हेट लगा लिया और दूर से पीछा करने लगा.
कुमारपाड़ा पहुँच कर वह अजनबी, एक बंद मकान के बारामदे में रुक गया. उसने अपना लॅपटॉप खोला और उससे शायद कुछ इन्स्पेक्टर झादे ने तुरंत अपना मोबाईल जैसा गेजेट, जिसे उसके मित्र जेम्स बोंड ने ओक्टोपसीकेस के दौरान जयपुर में भेंट में दिया था, निकाला और देखने लगा. वह देख कर दंग रहा गया कि उसने किसी डॉ.यू.के. हेम्ब्रोम और कोई ए.टुडू के नाम से ८ मेसेज विभिन्न लोगों को एफ.बी. में भेजा.
इन्स्पेक्टर झादे ने आव देखा न ताव,चीते की जैसी फुर्ती से अजनबी पर झपटने के लिए बढ़ा, लेकिन वो फटीचर उससे भी तेज निकला और, रसिकपुर कि ओर जाने वाली एक पतली सी एक गली में घुसकर धुएं में गायब हो गया.,वहाँ एक झोपडी से गोयंठे के चूल्हे का धुआं, बेतहाशा निकल कर चारों ओर फ़ैल रहा था, उसीका फायदा उसने उठाया.


2.   पिक्चर ... ... ... अभी बाकी है, मेरे दोस्त !!!
भाग – 1 (लेखक – सुकुमार) 
समय: प्रात: 4.00 बजे ; स्थान : दुमका प्राइवेट बस स्टैंड
चींऽऽऽऽऽऽऽऽ ... । ब्रेक का तेज आवाज के साथ एक मारुति ऑल्टो बस स्टैंड के अंदर आकर रुकता है । बस स्टैन्ड पर उपस्थित सभी लोगों का आँख उसी दिशा में घूम जाता है । कार का ड्राइवर वाला दरवाजा खुलता है और उससे  निकलता है एक छैल-छबीला बाँका नौजवान । इ और कोई नहीं भाई, अपने ही मित्र छोटाबाबु हैं। तभी दूसरे तरफ का दरवाजा खुलता है और उससे भी एक युवा एक एयरबैग के साथ प्रकट होता है । परंतु इस युवक के सौम्य मुखमंडल पर एक गाम्भीर्य है । वह एक विचारशील कवि अथवा लेखक प्रतीत हो रहा है । तभी छोटाबाबु बोल पड़ा, “तुम  बहुत  जिद्दी हो, सुन्दर । और एक दिन रुक जाते, तो तुम्हारा क्या घिसता ? और जा भी रहे हो तो एकदम मुंह अंधेरे, सुबह की पहली बस से । अरे, कम से कम नास्ते के लिए तो रुक जाते ।जी, हाँ , इ सौम्य, सुशील, गम्भीर युवा और कोई नहीं, विख्यात जनप्रिय लेखक स.म.ह. ही हैं  । कार से उतर दोनों युवा सामने खड़ी हिम्मतसिंहका रोडवेज़के  दुमका-रामपुरहाट बस की ओर कदम बढ़ाते हैं । तभी बस का घाघ कंडक्टर छेदीलाल दोनों को देखकर सलाम ठोंकता हुआ स.म.ह. से मुखातिब होता हुआ बोला, “आईं इंजीनियर साहिब । डॉक्टर साहब के मोबाइल आईल रहला । रव्वा खातिर बहुत बढ़िया सीट रखल बानी । एकदम आगे, मगर लेडीज के ठीक पीछे ।लेडीज शब्द सुनते ही स.म.ह. चिहुँक कर बोल पड़्ते हैं, “इ का छेदीलाल, तुम अभियो अपना हरकत से बाज नहीं आए हो । लगता है, इंसपेक्टर झादे झोन से तुमरा फिर मुक्कालात कराना ही पड़ेगा ।इ सुनकर छेदीलाल घबड़ा गया और बोला अरे इ का कहत बानी हुजूर , अब हम एकदम्मे सीधा हो गईल बानी । काहे से कि तबहीं इंसपेक्टर साहब हमका कहलस, कि ऐ रे छेदिया, अब फिर से कभी किसी लेडीज पयसंजर से छेड़-छाड़ किया, अउर खास करके किसी संताली लड़की के तरफ आँख उठा के भी देखा, तो साले तोर बदन में इतने छेद कर देंगे कि सुसरे समझ भी नहीं पाओगे, के साँस कहाँ से लेंव और ...”, “बस बे चुप कर, नहीं तो अभिये छेद देंगे ”, छोटाबाबु गुर्राया, और फिर सुन्दर से बोला, “तो फिर ठीक है, सीट पकड़ो, और मैं चलता हूं, क्योंकि बहुत तेज प्रेशर बन रहा है ।स.म.ह. मुस्कराए और हाथ मिलाकर छोटाबाबु को विदा किया और फिर बस पर चढ़े । सीट पर सामान रखकर घड़ी देखा तो बस के खुलने में काफी समय था । कुछ सोचकर उन्होंने अपने जेब से एक लाइटर और विल्स नेवी कट, जिसका सेवन ऊ अपने कॉलेज के दिनों से करते आ रहे थे, का डिब्बा बरामद किया और बस से उतरकर स्टैंड से बाहर सड़क पर आ खड़े हुए ।                      

3. भाग – 2 (लेखक – अन्द्रेयास टुडु)
समय: प्रात: 4.25 बजे ; स्थान : दुमका
इन्स्पेक्टर झादे ने आशा नहीं छोड़ा और लंबे-लंबे कदम बढ़ाते हुए,सीधा बस स्टैंड पहुंचा, लेकिन देर हो चुकी थी, उसने फटीचर की सिर्फ एक झलक ,रामपुरहाट कि ओर जाने वाली बस पर देखा.

4. भाग -3 (लेखक – सुकुमार)
समय: प्रात: 4.30 बजे ; स्थान : दुमका प्राइवेट बस स्टैंड
खलासी (क्लीनर) राजु हाड़ी के लम्बी सीटी बजाते ही ड्राईवर गिदऽ मराँडी ने पहले से ही स्टार्ट और फर्स्ट गियर में घर्र- घर्र कर रहे खड़े बस के क्लच से पैर हटाया और बस तेजी से सड़क के ओर बढ़ा । बस का सिर्फ आधा ही सीट भर पाया था । एक तो आज छुट्टी का दिन था और ऊपर से बस का टाइम टेबल ही कुछ इस तरह का था । वैसे भी बस मालिकों को रिटर्न ट्रिप से ही पूरा उम्मीद रहता था । तभी स्टैंड से बाहर निकल रहे बस पर तेजी से दौड़कर दो सवारी चढ़े । पहला फटीचर सा था, और फटा चप्पल पहन कर भी बस में तेजी से चढ़ने में कामयाब हो गया था । उसका दोनों आँख, जैसे शून्य में घूर रहा हो, लेकिन फिर भी उसके चेहरे से मानो एक दृढ़ निश्चय झलक रहा था । घबराहट का तो मानो नामोनिशान ही नहीं था । वैसे, अगर वहाँ कोई मनोचिकित्सक उपस्थित रहता, तो पहले ही झलक में बोल देता, कि इस व्यक्ति का मानसिक संतुलन गड़बड़ाया हुआ है । शून्य में घूरते उन आँखों ने अब पैने नजरों से बस के सीटों का मुआइना किया और पाया कि  खिड़की वाला कोई सीट खाली नहीं था, सिवाय सबके सामने के सीट के । ऊ तेजी से सामने के तरफ पहुँचा  तभी उसका नजर सीट के बगल में लिखे जनानाशब्द पर पड़ा, और ऊ व्यक्ति वही रुक गया और फिर उसके ठीक पीछे का सीट पर, जिसमें खिड़की के तरफ पहले से ही कोई बैठा हुआ था, धम्म से बैठ गया । उसके इस तरह बैठने पर बगल का व्यक्ति फटीचर के तरफ मुड़ा और उसके मुंह से इ शब्द निकले, “ अरे, अंगरेज !
सुधी पाठकगण बिलकुल सही समझ रहे हैं । इस उद्गार को व्यक्त करने वाले थे, स.म.ह. और ऊ फटीचर था, इंग्लिश लाल बेसरा । इंग्लिश बोल पड़ा, “ अरे, सुन्दर, तुम !
खैरियत है, पहचान तो लिया”, स.म.ह. बोले । फिर दोनों में बात होने लगा । स.म.ह., तो खैर, अपने घर पत्ताबाड़ी जा रहे थे, पर इंग्लिश भी बोला हम भी वहिए उतरेंगे ।स.म.ह. प्रसन्नचित्त होकर बोले, “चलो, अच्छा हुआ, अब अगले तीन दिनों तक कहीं जाने नहीं दूंगा ।पर इंग्लिश बोला, “हम तुमरे इहाँ नहीं रुकेंगे, हमको बहुत काम है ।फिर धीमे स्वर में जो इंग्लिश बोला, उसका लब्बो-लुबाब इ है, कि इंग्लिश जाहेर-खण्ड के मूर्खमंत्री से बहुत ही खफा था । उसने ठान लिया था कि पहले ऊ मसानजोड़ डैम को उड़ाएगा, फिर  मूर्खमंत्री का खून कर देगा । वेदप्रकाश शर्मा के समकक्ष माने जानेवाले स.म.ह. तो इ सुनकर स्तब्ध ही रह गए । कल ही मूर्खमंत्री का खून  तो हो चुका था, तब इ इंग्लिश किसका खून करेगा ? तभी अग्रणी फोटोग्राफर स.म.ह. के दिमाग में फ्लैश-बल्ब कौंधा । दोस्त तो दीवाना है । बेचारे दीवाने दोस्त को मूर्खमंत्री के  क़त्ल हो जाने के बारे में भी पता नहीं था । फिर वे सोचे कि पागल बन्धु को तो समझाना ही पड़ेगा । तभी सामने का सीट से एक सेंट जैसा खुशबू का झोंका आया । 

पाठकगण ! आप तो भूल ही गए कि बस में और एक सवारी फटीचर के भी पीछे चघा था । ऊ कौन था ? उनी दॉ ऑकॉए ताँहेंकाना ??

बस में चढ़ा आखिरी सवारी, खलासी राजु हाड़ी के बार-बार बोलने पर भी बस के पिछले दरवाजे के दूसरे पायदान से आगे नहीं बढ़ा । ऊ भी कोई फटीचर सा ही दिखनेवाला मध्यम कद-काठी का व्यक्ति था । बदन पर महीन कपड़े का बना बदरंग सा पठानी सूट, पैर में फटा चप्पल और सर और चेहरे को ढका एक बड़ा-सा स्कार्फनुमा रूमाल । उसके कंधे से एक बैग झूल रहा था । रूमाल से अपने चेहरे को ढके-ढके ही उस व्यक्ति ने  बैग से एक महीन कपड़े का बना हुआ बुरक़ा निकाला और बड़े ही दक्षता के साथ-साथ उसे पहन लिया । फिर उस व्यक्ति ने अपने बैग से एक पॉलीथिन निकाला  और झुककर अपने फटीचर चप्पलों को पॉलीथिन में डालकर अपने बैग में रख लिया । उसके ऐसा करने पर राजु हाड़ी, जो अबतक दरवाजे की खिड़की से बाहर झाँक रहा था, का ध्यान उधर आकृष्ट हो गया । ऊ अब बड़े ध्यान से इस सवारी को, जो लगभग उससे सटकर ही खड़ा था, को देखने लगा । राजु के देखने का परवाह किए बिना इस व्यक्ति ने राजू के तरफ पीठ किए एक ऐसा हैरतअंगेज कारनामा अंजाम दिया, जिसको अगर राजु देख पाता, तो उसके होश ही गुम हो जाते । उस व्यक्ति ने बहुत आराम से अपने हाथ बुरक़े के नीचे से अपने नक़ाब के नीचे पहुँचाए और अपने कानों के पीछे से और फिर सारे चेहरे से एक महीन से झिल्ली को अलग किया । फिर, बैग से दो ऊँची एड़ी की दो जूतियाँ निकालीं और पहन ली । राजु अब बस के दरवाजे के पल्ले को बाहर के ओर खुला लटकता छोड़कर भकुए के तरह भक होकर इस व्यक्ति के ओर एकटक देखने लगा । अचानक ही, ऊ व्यक्ति राजु के ओर मुड़ा और उसने अपना नक़ाब उठाते हुए राजु से शहद के तरह मीठी जनानी आवाज में पूछा, “व्हाट आर यू स्टेयरिंग एट ?” ऐसी आवाज, और ऊ भी अंग्रेजी में ? राजु  गिरते-गिरते बचा । उसके सामने एक अनिन्द्य सुन्दरी खडी थी । राजु को इस तरह हक्का-बक्का छोड़ अपने बैग से सेंट निकालकर स्प्रे करते हुए उ रूपसी सामने की ओर बढ़ी और जाकर खाली लेडीज सीट पर बैठ गई । बैग को ऊपर सामान रखनेवाले जगह पर धर दिया ।     

समय: प्रात: 4.42 बजे ; स्थान : हिम्मतसिंहका रोडवेज़का   दुमका-रामपुरहाट बस

अब तो पत्ताबाड़ी पहुँचने ही वाले हैं । घर जाकर अपने कैनन डीएसएलआर का पूरा उपयोग करेंगे, स.म.ह. ने सोचा । अरे, बाहर के दृश्य कितने अच्छे हैं, जंगल कितना मनमोहक लग रहा है, इसका तो फोटो खींचना ही होगा, लेकिन कैनन तो बैग के अन्दर ही है । कोई बात नहीं, स.म.ह. ने सोचा, अपने नोकिया एन 97 से ही एक-आध तस्वीरें उतरते ले लूं । स.म.ह. ने नोकिया को खिडकी के बाहर के ओर फोकस किया ।

गिदऽ मराँडी आदतन पियक्कड़ था । आज तो उसने भोरे-भोर महुआ चढ़ा लिया था । बस अब पत्ताबाड़ी बस  पहुँचने ही वाला था । तभी अचानक दो बैल दौड़कर सड़क पर बस के सामने आ गए ।

रूपसी रहस्यमयी को तभी महसूस हुआ कि उसने फोकट में ही खाली-पीली सेंट का शीशी पकड़ रखा है । उसे बैग में रखने को ऊ उठ खड़ी हुई ।

चियाँहऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ! ?*$#%  गिदऽ मराँडी ने जोरों का ब्रेक लगाया । रूपसी सम्हल नहीं पाई और अपने को बचाने में उसे पीछे घूम जाना पड़ा । चेहरे से नक़ाब भी हट गया था । खटैक ! स.म.ह. शटर दबाए, परंतु सेलफोन का दिशा अब झटके से अंदर के ओर घूम चुका था और उसमें क़ैद हो गया रूपसी रहस्यमयी का बेपनाह हुस्न ।

लोग ड्राइवर को गाली देने लगे । गिदऽ मराँडी का भी नशा क़ाफूर हो चुका था । बस मिनटों में बस पत्ताबाड़ी बस  स्टॉप पर रुक गया ।      
स.म.ह. अपने मित्र इंग्लिश लाल बेसरा के साथ बस से उतर पड़े । बस भी चल पड़ा ।                     

समय: प्रात: 4.53 बजे ; स्थान : मोहुल पहाड़ी बस स्टॉप
हिम्मतसिंहका रोडवेज़का   दुमका-रामपुरहाट बस आके रुकता है । चन्द लोग उतरते हैं ।
उसमें शामिल है हमारी रूपसी रहस्यमयी । ऊ तेजी से जूतियां फटकारती हुई क्रिस्चियन हॉस्पिटल की ओर बढ़ती है । फिर उसको पार करते हुए एक मेडिसिन शॉप में पहुँचती है । स्टोर का मालिक अकेला दूकान पर था । उसके सामने जाकर रूपसी ने अपना नक़ाब हटाया तो स्टोर के मालिक के मुंह से निकला, “बॉस, आपऔर ऊ तेजी से हमारी रहस्यमयी को स्टोर के पृष्ठभाग में ले गया जहाँ काफी फैला हुआ जगह था ।  स्टोर का मालिक रहस्यमयी को जब अकेला छोड़कर चला गया, तो उसने अपने बैग से एक सैटेलाइट रिसीवर निकाला और नंबर डायल करने के बाद बोलने लगी, “फूलकुमारी रिपोर्टिंग । सर, मिशन एकॉम्पलिश्ड । मूर्खमंत्री इज़ नाउ नो मोर । एंड दैट रास्कल झाडे झोन वाज़ थिंकिंग दैट ही कॅन स्टॉप मी ! सर, इमीडिएट्ली अरैंज फॉर माई रिटर्न  टू द बिग ऍपल ।

5. भाग – 4 (लेखक – अन्द्रेयास टुडु)
अब शायद इन्स्पेक्टर झादे , श्री स.म.हेम्ब्रोम से इस बारे में बारे बात करने जा रहें हैं, क्योंकि दुमका – रामपुरहाट का इलाका जंगल और पहाड़ियों से घिरा है और अनजान ब्यक्तियों का उधर जाना खतरे से खाली नहीं है.... दिल थाम कर बैठिये ...आगे का हाल श्री.स.म.ह. से जानने के लिए..

6. भाग –  5 (लेखक – सुन्दर मनोज हेम्ब्रम)
समय: प्रात: 8.00 बजे ; स्थान : स.म.ह. का निवास, केन्दपहाड़ी
झाडे साहब हमारे पुराने परिचितों में एक हैं. उनका जूनून ही उनकी खासियत है...एक बार ठान लिया तो ठान लिया. और मजाल है कि अपराधी बच के निकल जाय. बुद्धि के साथ-साथ शारीरिक-दक्षता से भी नवाज़ा था उन्हें: परवरदिगार ने. उनकी चुस्ती-फुर्ती देख कर नौजवान भी शर्मा जाएँ. उनकी बौधिक-कुशाग्रता देख कर तो उनके "सोरेन" होने पर भी शक होने लगता था मुझे. खैर, आ धमके मेरे घर केन्दपहाड़ी में, याद रहे मेरा गाँव दुमका-रामपुरहाट रोड में पत्ताबाड़ी के पास है. संयोगवश मैं भी घर पर ही था. आते ही प्रयोजन बताया.

"
उफ्फ़, झाडे साहब...अभी-अभी तो मैं उसी बस से आया हूँ." मैंने हैरान होकर कहा."लेकिन मुझे तो कोई संदेह-जनक इंसान नहीं लगा"
"
आप नहीं जानते हैं मनोज जी, वो काफी शातिर मुजरिम है.गिरगिट की तरह रंग बदल लिया होगा..." उन्होंने कहा.
"
अच्छा आप हुलिया बताइए...शायद मुझे कुछ याद आ जाये."

उन्होंने पूरा हुलिया बयान किया और साथ में "लेप-टॉप" का भी जिक्र किया. यह सुनकर तो मेरे तोते उड़ गये. उन्होंने जिसका जिक्र किया वो तो मेरे ही बगल बैठा था और मेरा ही मित्र था.

"
झाडे साहब,...आपको कोई गलत-फहमी तो नहीं हुई है ?"

"
इंस्पेक्टर झाडे झोन सोरेन को कभी कोई गलत-फहमी नहीं होती...वो उड़ते परिंदे के भी पर गिन लेता है. और अपराधी को तो वो सूंघ के ही पहचान लेता है. स्निफर डॉग की तरह." फुँफकार के साथ कहा उन्होंने. फिर मुझे गौर से देकते हुए पूछा "वैसे आपके चेहरे में बारह क्यूँ बज गये ? कहीं वो आप तो नहीं ..."

"
अरे नही झाडे साहब...ऐसी कोई बात नहीं. वैसे अपराधी ने गुनाह क्या किया...कुछ संगीन है क्या..?" मैंने आपने-आप को सँभालते हुआ पूछा.

"
संगीन..अति संगीन. आजकल के ज़माने में इसे सायबर क्राईम बोलते हैं. उसने तो मेरे ही मित्र डॉ.यु.के. और टुडू साहब का जीना हराम कर दिया है. उनके बेदाग़ छवि पे कीचड़ उछालने की कोशिश की है..मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ..कम-से-कम एक साल के लिए तो अंदर करा ही दूँगा." गज़ब का ज़ज्बा था उसकी आवाज़ में.

उसके ज़ज्बा को देख कर मैं भी घबरा गया. और तरस आने लगी आपने मित्र के किस्मत पर...पाला पड़ा भी तो किससे...इंस्पेक्टर झाडे झोन सोरेन ओ.एस.डी.क्राईम-ब्रांच से. गया वो तो...साथ में चिंता भी सताने लगी...और मित्र को बचाने का ठान लिया.

"
झाडे साहब, एक अर्ज है आपसे..फिर मैं आपको कुछ बता सकता हूँ. लेकिन मेरे बोलने के पहले वादा करें कि..आप मुझे निराश नहीं करेंगे..!" मैंने आपने दिमाग का इस्तेमाल किया..आखिर दोस्ती का सवाल था.

"
हाँ, बोलिए..आपके लिए तो जान-हाज़िर है " इं.झाडे ने बिना सोचे झट से कह दिया.

"
दर-असल, वो मेरा मित्र है...नाम है: इंग्लिश लाल बेसरा. अच्छा लड़का हुआ करता था, लेकिन परिस्थितियों के मारे दिमाग सटक गया है..ऊट-पटांग हरकत करता है. मिलेंगे तो सब समझ में आ जायेगा. मेरा आपसे एक दरखास्त है: छोड़ दीजिए साले को...मैं समझा दूँगा...समझ जायेगा...बेचारा !" जान-बूझ कर मैंने उसे और बेचारा साबित करने की कोशश की ताकि वो खतरनाक इं.झाडे झोन सोरेन से बच जाय..वरना धुलाई भी होगी और जेल तो होगी ही.

"
अरे आपने इतनी बड़ी बात मुझसे अब-तक छुपाई..मुझे आप जैसे सम्मानित व्यक्ति से ऐसी उम्मीद ना थी. और ये क्या आपने चालाकी से मुझे मजबूर भी कर लिया...जबकि आप जानते हैं कि: झाडे झोन जब एक बार वचन देता है तो जान देकर भी निभाता है" उनके स्वर में ग्लानि मिश्रित गर्व था.

"
झाडे साहब, आपने वचन दिया है...और मुझे पता है..आप इसे तोड़ेंगे नहीं. और मैं भी ये वचन देता हूँ कि: मैं इन्ग्लिशलाल को समझा-बुझा दूँगा कि दुबारा ऐसा काम किये तो ...गये !"

इस तरह से ब-मुश्किल बचा पाया ...आपने उस "ढक्कन" मित्र को: बेचारा 'इंग्लिशलाल बेसरा' ! 


(इस कहानी को आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं:-

इंस्पेक्टर झाडे झोन सोरेन, ओ.एस.डी. क्राईम-ब्रांच  के कारनामे)  


इंग्लिश लाल के लिए स.म.ह. को अभयदान देकर इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन वापस रवाना हुए ।

Andreas Tudu उवाच :- There is a saying in Jharkhand,"You don't find Insp.Jhade, he finds you". Isliye Bahno aur Bhaiyo, cyber-crime se bachen aur doosron ko bhi bachayen warna lene ke dene padh jayenge.

7. भाग –  6 (लेखक – सुकुमार)
समय: प्रात: 10.00 बजे ; स्थान : दुमका पुलिस लाइन 
झाडे झोन सोरेन को जब कोई क्लू नहीं मिलता है, तो उ अपने मित्र इंसपेक्टर सुबोध मुरमु का लाया ताड़ीवाला बाबा का प्रसाद पीकर सुबह दस बजे ही सो जाता है और भयावने सपने देखने लगता है । क्या देखता है कि जानगुरु दिबु सोरेन के सुनुम-पाञ्जा करने के बाद ऊ जानगुरु दिबु सोरेन और हरी पॉटॉर के बीच में किसी भयानक नरक जैसे जगह में झापॉट आच् गॉगॉ सुखी सोरेन का चुपचाप पीछा कर रहा है । और झापॉट आच् गॉगॉ के साथ चल रहा है सयतान, जिसके कंधे पर दुन्दु भी बैठा हुआ है । तुयु और गिदी और आगे-आगे चल-उड़ रहे हैं । पीछा करते-करते झाडे झोन सोरेन को लगता है कि समाँ बदल रहा है । अचानक ही उसने खुद को एक खूबसुरत शहर में पाया । सामने एक सुंदर भवन जिसपर लिखा हुआ था, फेसबुक । आगे चल रहा सयतान अचानक ही रंजित ठाकुर में बदल गया और फिर गायब हो गया । जब उसने झापॉट आच् गॉगॉ के तरफ देखा तो ऊ धीरे-धीरे मिस लिली फ्रॉम सिसिली में बदलने लगी और दौड़कर 'फेसबुक भवन' में दाखिल हो गई । झाडे झोन सोरेन, जानगुरु दिबु सोरेन और हरी पॉटॉर को पीछे छोड़कर भाग के मिस लिली के पीछे लपका । उसने देखा कि अंदर दूर में एक मेल-बॉक्स है, जिसमें मिस लिली कुछ डाल रही है ।

झाडे झोन मिस लिली के तरफ बढ़नेवाला ही था, कि किसीने उसके कंधे पर हाथ रख दिया । चिहुँककर जैसे ही झाडे झोन ने आँख खोला तो देखा सामने पत्रकार गोरखनाथ दुबे । दुबे को देख झाडे झोन चीख पड़ता है, "दुबे, क़ातिल का पता चल गया ! चलो, स्कॉर्पियो में बैठो । कहीं, मिस लिली फ्रॉम सिसिली वनाँचल एक्स्प्रेस पकड़कर राँची पहुंचकर फ्लाइट न पकड़ ले ।उसका पासपोर्ट भी सीज़ नहीं हुआ है, कहीं बिदेस निकल गई तो ... जय झारखण्ड !!" । 
Sunder Manoj Hembrom उवाच :- वाह क्या बात है ? यक़ीनन यही हुआ होगा. सब किरदार बदल रहे हैं...स्थान और स्तिथि भी...बिल्कुल जादुई अंदाज़ में...स्वप्न की तरह. लेकिन ...
हमारे इंस्पेक्टर झाडे झोन सोरेन (ओ.एस.डी.क्राईम-ब्रांच) से बच कर क़ातिल/गुनाहगार भाग नहीं सकता. उसके हाथ "कानून" से भी लंबे हैं.
जय झारखण्ड ...जय बाबा ताड़ीवाला !

8. भाग –  7 (लेखक – सुकुमार)
समय: अपराह्न 12.30 बजे ; स्थान : स.म.ह. का निवास, केन्दपहाड़ी
इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन स.म.ह. के घर पहुँच कर दहाड़ता है, “कहाँ है ऊ इंग्लिश लाल बेसरा का बच्चा ?”
स.म.ह. इ दहाड़ सुनकर बाहर निकल कर बोले क्या हुआ इंसपेक्टर साब ? अभी-अभी तो आपने अभयदान दिया था ?”
 झाडे झोन बोला, “अभयदान तो अभी भी है, हमको तो बस उसका लॅपटॉप चाहिए ।
है ना !स.म.ह. बोले । लॅपटॉप तो मेरे ही  पास छोड़कर गया है ।
लॅपटॉप लाया गया और झाडे झोन ने बड़ी दक्षता और तीव्रता से उसका परीक्षण किया । फिर मुंह लटकाकर बोले मैंने ऑक्टॉपसीगैजेट से जो ई-मेल देखे थे, ऊ इसमें नहीं हैं । मतलब साफ है, इंग्लिश लाल बेसरा का इस वारदात से कोई लेना-देना नहीं है । मेरा पूरा दावा है कि मूर्खमंत्री का क़त्ल मिस लिली फ्रॉम सिसिली ने ही किया है । और इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन ने जब कोई दावा किया तो ऊ हमेशा सही निकला है । लेकिन इस औरत को पकड़ूँ कैसे । क्योंकि कहते हैं कि मिस लिली फ्रॉम सिसिली को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।
लगता था कि सदी का महानतम जासूस  इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन अब पूरा का पूरा निराश हो चुका था ।
फिर झाडे झोन स.म.ह. से बोला, “लाइए, अपना मोबाइल दीजिए, मेरे मोबाइल की बैटरी खलास हो चुकी है ।
 स.म.ह. अपना सेलफोन झाडे झोन को थमाए । फोन का वालपेपर देखते ही अचानक झाडे झोन उछलकर खड़ा हो गया, “इ तस्वीर आपको कहाँ से मिली ?”
क्यों ?” स.म.ह. पूछे, “ ये आज हमारे बस में थी । बस से ही उतरते वक़्त खींची है । कौन है इ ?”

अरे, ऊ मारा ।बाहर अपने स्कॉरपियो के तरफ लपकता हुआ  झाडे बोला, “अब क़ातिल इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन से बचकर भाग नहीं सकता । अरे, यही तो है, मिस लिली फ्रॉम सिसिली ! जय झारखण्ड !!!”   

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