मंगलवार, 23 अगस्त 2011

पिक्चर ... ... ... अभी बाकी है, मेरे दोस्त !!!




समय: प्रात: 4.00 बजे ; स्थान : दुमका प्राइवेट बस स्टैंड
चींऽऽऽऽऽऽऽऽ ... । ब्रेक का तेज आवाज के साथ एक मारुति ऑल्टो बस स्टैंड के अंदर आकर रुकता है । बस स्टैन्ड पर उपस्थित सभी लोगों का आँख उसी दिशा में घूम जाता है । कार का ड्राइवर वाला दरवाजा खुलता है और उससे  निकलता है एक छैल-छबीला बाँका नौजवान । इ और कोई नहीं भाई, अपने ही मित्र छोटाबाबु हैं। तभी दूसरे तरफ का दरवाजा खुलता है और उससे भी एक युवा एक एयरबैग के साथ प्रकट होता है । परंतु इस युवक के सौम्य मुखमंडल पर एक गाम्भीर्य है । वह एक विचारशील कवि अथवा लेखक प्रतीत हो रहा है । तभी छोटाबाबुबोल पड़ा, “तुम  बहुत  जिद्दी हो, सुन्दर । और एक दिन रुक जाते, तो तुम्हारा क्या घिसता ? और जा भी रहे हो तो एकदम मुंह अंधेरे, सुबह की पहली बस से । अरे, कम से कम नास्ते के लिए तो रुक जाते ।” जी, हाँ , इ सौम्य, सुशील, गम्भीर युवा और कोई नहीं, विख्यात जनप्रिय लेखक स.म.ह. ही हैं  । कार से उतर दोनों युवा सामने खड़ी ‘हिम्मतसिंहका रोडवेज़’ के  दुमका-रामपुरहाट बस की ओर कदम बढ़ाते हैं । तभी बस का घाघ कंडक्टर छेदीलाल दोनों को देखकर सलाम ठोंकता हुआ स.म.ह. से मुखातिब होता हुआ बोला, “आईं इंजीनियर साहिब । डॉक्टर साहब के मोबाइल आईल रहला । रव्वा खातिर बहुत बढ़िया सीट रखल बानी । एकदम आगे, मगर लेडीज के ठीक पीछे ।” लेडीज शब्द सुनते ही स.म.ह. चिहुँक कर बोल पड़्ते हैं, “इ का छेदीलाल, तुम अभियो अपना हरकत से बाज नहीं आए हो । लगता है, इंसपेक्टर झादे झोन से तुमरा फिर मुक्कालात कराना ही पड़ेगा ।” इ सुनकर छेदीलाल घबड़ा गया और बोला “अरे इ का कहत बानी हुजूर , अब हम एकदम्मे सीधा हो गईल बानी । काहे से कि तबहीं इंसपेक्टर साहब हमका कहलस, कि ऐ रे छेदिया, अब फिर से कभी किसी लेडीज पयसंजर से छेड़-छाड़ किया, अउर खास करके किसी संताली लड़की के तरफ आँख उठा के भी देखा, तो साले तोर बदन में इतने छेद कर देंगे कि सुसरे समझ भी नहीं पाओगे, के साँस कहाँ से लेंव और ...”, “बस बे चुप कर, नहीं तो अभिये छेद देंगे ”, छोटाबाबु गुर्राया, और फिर सुन्दर से बोला, “तो फिर ठीक है, सीट पकड़ो, और मैं चलता हूं, क्योंकि बहुत तेज प्रेशर बन रहा है ।” स.म.ह. मुस्कराए और हाथ मिलाकर छोटाबाबु को विदा किया और फिर बस पर चढ़े । सीट पर सामान रखकर घड़ी देखा तो बस के खुलने में काफी समय था । कुछ सोचकर उन्होंने अपने जेब से एक लाइटर और विल्स नेवी कट, जिसका सेवन ऊ अपने कॉलेज के दिनों से करते आ रहे थे, का डिब्बा बरामद किया और बस से उतरकर स्टैंड से बाहर सड़क पर आ खड़े हुए ।                      

समय: प्रात: 4.25 बजे ; स्थान : दुमका
इन्स्पेक्टर झादे लंबे-लंबे कदम बढ़ाते हुए, बस स्टैंड की दिशा में चल रहे हैं ।

समय: प्रात: 4.30 बजे ; स्थान : दुमका प्राइवेट बस स्टैंड
खलासी (क्लीनर) राजु हाड़ी के लम्बी सीटी बजाते ही ड्राईवर गिदऽ मराँडी ने पहले से ही स्टार्ट और फर्स्ट गियर में घर्र- घर्र कर रहे खड़े बस के क्लच से पैर हटाया और बस तेजी से सड़क के ओर बढ़ा । बस का सिर्फ आधा ही सीट भर पाया था । एक तो आज छुट्टी का दिन था और ऊपर से बस का टाइम टेबल ही कुछ इस तरह का था । वैसे भी बस मालिकों को रिटर्न ट्रिप से ही पूरा उम्मीद रहता था । तभी स्टैंड से बाहर निकल रहे बस पर तेजी से दौड़कर दो सवारी चढ़े । पहला फटीचर सा था, और फटा चप्पल पहन कर भी बस में तेजी से चढ़ने में कामयाब हो गया था । उसका दोनों आँख, जैसे शून्य में घूर रहा हो, लेकिन फिर भी उसके चेहरे से मानो एक दृढ़ निश्चय झलक रहा था । घबराहट का तो मानो नामोनिशान ही नहीं था । वैसे, अगर वहाँ कोई मनोचिकित्सक उपस्थित रहता, तो पहले ही झलक में बोल देता, कि इस व्यक्ति का मानसिक संतुलन गड़बड़ाया हुआ है । शून्य में घूरते उन आँखों ने अब पैने नजरों से बस के सीटों का मुआइना किया और पाया कि  खिड़की वाला कोई सीट खाली नहीं था, सिवाय सबके सामने के सीट के । ऊ तेजी से सामने के तरफ पहुँचा  तभी उसका नजर सीट के बगल में लिखे ‘जनाना’ शब्द पर पड़ा, और ऊ व्यक्ति वही रुक गया और फिर उसके ठीक पीछे का सीट पर, जिसमें खिड़की के तरफ पहले से ही कोई बैठा हुआ था, धम्म से बैठ गया । उसके इस तरह बैठने पर बगल का व्यक्ति फटीचर के तरफ मुड़ा और उसके मुंह से इ शब्द निकले, “ अरे, अंगरेज !”
सुधी पाठकगण बिलकुल सही समझ रहे हैं । इस उद्गार को व्यक्त करने वाले थे, स.म.ह. और ऊ फटीचर था, इंग्लिश लाल बेसरा । इंग्लिश बोल पड़ा, “ अरे, सुन्दर, तुम !”
“खैरियत है, पहचान तो लिया”, स.म.ह. बोले । फिर दोनों में बात होने लगा । स.म.ह., तो खैर, अपने घर पत्ताबाड़ी जा रहे थे, पर इंग्लिश भी बोला “हम भी वहिए उतरेंगे ।” स.म.ह. प्रसन्नचित्त होकर बोले, “चलो, अच्छा हुआ, अब अगले तीन दिनों तक कहीं जाने नहीं दूंगा ।” पर इंग्लिश बोला, “हम तुमरे इहाँ नहीं रुकेंगे, हमको बहुत काम है ।” फिर धीमे स्वर में जो इंग्लिश बोला, उसका लब्बो-लुबाब इ है, कि इंग्लिश जाहेर-खण्ड के मूर्खमंत्री से बहुत ही खफा था । उसने ठान लिया था कि पहले ऊ मसानजोड़ डैम को उड़ाएगा, फिर  मूर्खमंत्री का खून कर देगा । वेदप्रकाश शर्मा के समकक्ष माने जानेवाले स.म.ह. तो इ सुनकर स्तब्ध ही रह गए । कल ही मूर्खमंत्री का खून  तो हो चुका था, तब इ इंग्लिश किसका खून करेगा ? तभी अग्रणी फोटोग्राफर स.म.ह. के दिमाग में फ्लैश-बल्ब कौंधा । दोस्त तो दीवाना है । बेचारे दीवाने दोस्त को मूर्खमंत्री के  क़त्ल हो जाने के बारे में भी पता नहीं था । फिर वे सोचे कि पागल बन्धु को तो समझाना ही पड़ेगा । तभी सामने का सीट से एक सेंट जैसा खुशबू का झोंका आया । 

पाठकगण ! आप तो भूल ही गए कि बस में और एक सवारी फटीचर के भी पीछे चघा था । ऊ कौन था ? उनी दॉ ऑकॉए ताँहेंकाना ??

बस में चढ़ा आखिरी सवारी, खलासी राजु हाड़ी के बार-बार बोलने पर भी बस के पिछले दरवाजे के दूसरे पायदान से आगे नहीं बढ़ा । ऊ भी कोई फटीचर सा ही दिखनेवाला मध्यम कद-काठी का व्यक्ति था । बदन पर महीन कपड़े का बना बदरंग सा पठानी सूट, पैर में फटा चप्पल और सर और चेहरे को ढका एक बड़ा-सा स्कार्फनुमा रूमाल । उसके कंधे से एक बैग झूल रहा था । रूमाल से अपने चेहरे को ढके-ढके ही उस व्यक्ति ने  बैग से एक महीन कपड़े का बना हुआ बुरक़ा निकाला और बड़े ही दक्षता के साथ-साथ उसे पहन लिया । फिर उस व्यक्ति ने अपने बैग से एक पॉलीथिन निकाला  और झुककर अपने फटीचर चप्पलों को पॉलीथिन में डालकर अपने बैग में रख लिया । उसके ऐसा करने पर राजु हाड़ी, जो अबतक दरवाजे की खिड़की से बाहर झाँक रहा था, का ध्यान उधर आकृष्ट हो गया । ऊ अब बड़े ध्यान से इस सवारी को, जो लगभग उससे सटकर ही खड़ा था, को देखने लगा । राजु के देखने का परवाह किए बिना इस व्यक्ति ने राजू के तरफ पीठ किए एक ऐसा हैरतअंगेज कारनामा अंजाम दिया, जिसको अगर राजु देख पाता, तो उसके होश ही गुम हो जाते । उस व्यक्ति ने बहुत आराम से अपने हाथ बुरक़े के नीचे से अपने नक़ाब के नीचे पहुँचाए और अपने कानों के पीछे से और फिर सारे चेहरे से एक महीन से झिल्ली को अलग किया । फिर, बैग से दो ऊँची एड़ी की दो जूतियाँ निकालीं और पहन ली । राजु अब बस के दरवाजे के पल्ले को बाहर के ओर खुला लटकता छोड़कर भकुए के तरह भक होकर इस व्यक्ति के ओर एकटक देखने लगा । अचानक ही, ऊ व्यक्ति राजु के ओर मुड़ा और उसने अपना नक़ाब उठाते हुए राजु से शहद के तरह मीठी जनानी आवाज में पूछा, “व्हाट आर यू स्टेयरिंग एट ?” ऐसी आवाज, और ऊ भी अंग्रेजी में ? राजु  गिरते-गिरते बचा । उसके सामने एक अनिन्द्य सुन्दरी खडी थी । राजु को इस तरह हक्का-बक्का छोड़ अपने बैग से सेंट निकालकर स्प्रे करते हुए उ रूपसी सामने की ओर बढ़ी और जाकर खाली लेडीज सीट पर बैठ गई । बैग को ऊपर सामान रखनेवाले जगह पर धर दिया ।     

समय: प्रात: 4.42 बजे ; स्थान : ‘हिम्मतसिंहका रोडवेज़’ का   दुमका-रामपुरहाट बस

अब तो पत्ताबाड़ी पहुँचने ही वाले हैं । घर जाकर अपने कैनन डीएसएलआर का पूरा उपयोग करेंगे, स.म.ह. ने सोचा । अरे, बाहर के दृश्य कितने अच्छे हैं, जंगल कितना मनमोहक लग रहा है, इसका तो फोटो खींचना ही होगा, लेकिन कैनन तो बैग के अन्दर ही है । कोई बात नहीं, स.म.ह. ने सोचा, अपने नोकिया एन 97 से ही एक-आध तस्वीरें उतरते ले लूं । स.म.ह. ने नोकिया को खिडकी के बाहर के ओर फोकस किया ।

गिदऽ मराँडी आदतन पियक्कड़ था । आज तो उसने भोरे-भोर महुआ चढ़ा लिया था । बस अब पत्ताबाड़ी बस  पहुँचने ही वाला था । तभी अचानक दो बैल दौड़कर सड़क पर बस के सामने आ गए ।

रूपसी रहस्यमयी को तभी महसूस हुआ कि उसने फोकट में ही खाली-पीली सेंट का शीशी पकड़ रखा है । उसे बैग में रखने को ऊ उठ खड़ी हुई ।

चियाँहऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ! ?*$#%  गिदऽ मराँडी ने जोरों का ब्रेक लगाया । रूपसी सम्हल नहीं पाई और अपने को बचाने में उसे पीछे घूम जाना पड़ा । चेहरे से नक़ाब भी हट गया था । खटैक ! स.म.ह. शटर दबाए, परंतु सेलफोन का दिशा अब झटके से अंदर के ओर घूम चुका था और उसमें क़ैद हो गया रूपसी रहस्यमयी का बेपनाह हुस्न ।

लोग ड्राइवर को गाली देने लगे । गिदऽ मराँडी का भी नशा क़ाफूर हो चुका था । बस मिनटों में बस पत्ताबाड़ी बस  स्टॉप पर रुक गया ।      
स.म.ह. अपने मित्र इंग्लिश लाल बेसरा के साथ बस से उतर पड़े । बस भी चल पड़ा ।                     

समय: प्रात: 4.53 बजे ; स्थान : मोहुल पहाड़ी बस स्टॉप
‘हिम्मतसिंहका रोडवेज़’ का   दुमका-रामपुरहाट बस आके रुकता है । चन्द लोग उतरते हैं ।
उसमें शामिल है हमारी रूपसी रहस्यमयी । ऊ तेजी से जूतियां फटकारती हुई क्रिस्चियन हॉस्पिटल की ओर बढ़ती है । फिर उसको पार करते हुए एक मेडिसिन शॉप में पहुँचती है । स्टोर का मालिक अकेला दूकान पर था । उसके सामने जाकर रूपसी ने अपना नक़ाब हटाया तो स्टोर के मालिक के मुंह से निकला, “बॉस, आप” और ऊ तेजी से हमारी रहस्यमयी को स्टोर के पृष्ठभाग में ले गया जहाँ काफी फैला हुआ जगह था ।  स्टोर का मालिक रहस्यमयी को जब अकेला छोड़कर चला गया, तो उसने अपने बैग से एक सैटेलाइट रिसीवर निकाला और नंबर डायल करने के बाद बोलने लगी, “फूलकुमारी रिपोर्टिंग । सर, मिशन एकॉम्पलिश्ड । मूर्खमंत्री इज़ नाउ नो मोर । एंड दैट रास्कल झाडे झोन वाज़ थिंकिंग दैट ही कॅन स्टॉप मी ! सर, इमीडिएट्ली अरैंज फॉर माई रिटर्न  टू द बिग ऍपल ।”

समय: प्रात: 8.00 बजे ; स्थान : स.म.ह. का निवास, केन्दपहाड़ी
यहाँ का वर्णन तो आप स.म.ह. से सुन ही चुके हैं ।  इंग्लिश लाल के लिए स.म.ह. को अभयदान देकर इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन वापस रवाना हुए ।

समय: प्रात: 10.00 बजे ; स्थान : दुमका पुलिस लाइन 
इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन अपने मित्र इंसपेक्टर सुबोध मुरमु का लाया ताड़ीवाला बाबा का प्रसाद पीकर सुबह दस बजे ही सो जाता है । यहाँ का वर्णन तो आप हमसे सुन ही चुके हैं, कि किस तरह दुबे द्वारा नींद तोड़ दिए जाने के बाद झाडे झोन मिस लिली फ्रॉम सिसिली के बारे में सोचकर बौखला उठता है । 

समय: अपराह्न 12.30 बजे ; स्थान : स.म.ह. का निवास, केन्दपहाड़ी
इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन स.म.ह. के घर पहुँच कर दहाड़ता है, “कहाँ है ऊ इंग्लिश लाल बेसरा का बच्चा ?”
स.म.ह. इ दहाड़ सुनकर बाहर निकल कर बोले “ क्या हुआ इंसपेक्टर साब ? अभी-अभी तो आपने अभयदान दिया था ?”
 झाडे झोन बोला, “अभयदान तो अभी भी है, हमको तो बस उसका लॅपटॉप चाहिए ।”
“है ना !” स.म.ह. बोले । “लॅपटॉप तो मेरे ही  पास छोड़कर गया है ।”
लॅपटॉप लाया गया और झाडे झोन ने बड़ी दक्षता और तीव्रता से उसका परीक्षण किया । फिर मुंह लटकाकर बोले “मैंने ‘ऑक्टॉपसी’ गैजेट से जो ई-मेल देखे थे, ऊ इसमें नहीं हैं । मतलब साफ है, इंग्लिश लाल बेसरा का इस वारदात से कोई लेना-देना नहीं है । मेरा पूरा दावा है कि मूर्खमंत्री का क़त्ल मिस लिली फ्रॉम सिसिली ने ही किया है । और इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन ने जब कोई दावा किया तो ऊ हमेशा सही निकला है । लेकिन इस औरत को पकड़ूँ कैसे । क्योंकि कहते हैं कि मिस लिली फ्रॉम सिसिली को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।”
लगता था कि सदी का महानतम जासूस  इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन अब पूरा का पूरा निराश हो चुका था ।
फिर झाडे झोन स.म.ह. से बोला, “लाइए, अपना मोबाइल दीजिए, मेरे मोबाइल की बैटरी खलास हो चुकी है ।”
 स.म.ह. अपना सेलफोन झाडे झोन को थमाए । फोन का वालपेपर देखते ही अचानक झाडे झोन उछलकर खड़ा हो गया, “इ तस्वीर आपको कहाँ से मिली ?”
“क्यों ?” स.म.ह. पूछे, “ ये आज हमारे बस में थी । बस से ही उतरते वक़्त खींची है । कौन है इ ?”

“अरे, ऊ मारा ।“ बाहर अपने स्कॉरपियो के तरफ लपकता हुआ  झाडे बोला, “अब क़ातिल इंसपेक्टर झाडे झोन सोरेन से बचकर भाग नहीं सकता । अरे, यही तो है, मिस लिली फ्रॉम सिसिली ! जय झारखण्ड !!!”   


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