नीचे एक पुराना खबर दे रहे हैं. खबर में इस्पेलिंगवा
का बहुते गलती भरा हुआ है (हमरे लिखने जैसा). बहुत सारा फैक्टवा भी गलतिए है. फिर
भी एक बड़े लेखक का राय है.
इसके अलावे और तीन खबर भी नीचे देखिए ।
देवनागरी लिपि में संताली साहित्य
काफी समृद्ध है
Dec 21, 11:50 pm
गोड्डा। सन् 1856 के पहले संताल परगना का नाम जंगल तराई परगना था। संताली साहित्यकार परीक्षित
मंडल बताते हैं कि 1856 में सिद्धो-कान्हू, चांद भैरव के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक
जोरदार आन्दोलन हुआ था। इस आंदोलन में तकरीबन दस हजार संतालों की नृशंस हत्या कर
दी गयी थी। आन्दोलन को दबाने और संताल जनजातियों को खुश रखने के लिये जंगल तराई
परगना का नाम 22 दिसंबर 1856 को संताल परगना रखा गया। श्री मंडल बताते हैं कि इसका
प्रथम डीसी एस्लो ईडन थे और संताल परगना का कमिश्नरी भागलपुर था। उस समय भागलपुर
कमिश्नर मि. आल्वा थे।
22 दिसंबर 2003 को भारतीय संविधान की आठवीं
अनुसूची में संताली भाषा को सम्मिलित किया गया। यही कारण है कि 22 दिसंबर को संताली दिवस मनाया जाता है। श्री मंडल ने
संताली भाषा के संबंध में बताया कि संताली भाषा पांच लिपि-देवनागरी, रोमन, उड़िया, बंगला, ओलचिकी
लिपि में लिखी व पढ़ी जाती है। रोमन लिपि में जार्ज फिलिप्स ने 1852 में सर्वप्रथम संताली साहित्य का प्रकाशन किया था
उसके बाद पी. ओ. बोर्डिग ने रोमन लिपि में होड़कू रेन मारी हापड़ाम कू रिया कथा का
प्रकाशन किया। ओलचिकी लिपि में भी संताली
साहित्य नगण्य है। देवनागरी लिपि में संताली साहित्य काफी समृद्ध है।
नोट :- ञेल ताबोनपे - ओलचिकी लिपि में संताली साहित्य नगण्य है। देवनागरी लिपि
में संताली साहित्य काफी समृद्ध है।
बैठक में संताली भाषा व साहित्य के विकास पर जोर
Jan 21, 12:24 am
साहिबगंज। विनय भवन सभाकक्ष में आल
नेशनल संताली लिटरेरी एंड एजुकेशनल रिसर्च आर्गेनाइजेशन की बुधवार को उपाध्यक्ष
प्रधान किस्कू की अध्यक्षता में बैठक हुई।
बैठक में झारखंड की वर्तमान शिक्षा
नीति पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। सरकारी विद्यालयों में मानक शिक्षा की
व्यवस्था का अभाव है और झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है। यहां रहने वाली अधिकांश
जनजातियां अशिक्षित है। ऐसे में यदि उनके बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार स्थानीय
भाषा में होना चाहिए। संताल परगना में अधिकतर जनजाति संताल की है इसलिए यहां संताली की पढ़ाई रोमन एवं देवनागरी लिपि में करायी
जाए, ऐसा पहले भी होता था। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व सरकार को गुमराह कर संताली
भाषा एवं साहित्य के विकास की गति को अवरुद्ध करना चाहती है। अन्सलेरो ने नये
सरकार के मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री से उम्मीद जताई है कि वे जन भावना की कद्र
करते हुए नीतिगत फैसला लेते हुए संताली भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए पहल
करेगी।
इस अवसर पर छवि हेम्ब्रम, फा. टोम, मिथियस
बेसरा, प्रेम बेसरा हेम्ब्रम, फ्रानसिस
मुर्मू, जेठा मरांडी, डा.
विजय हांसदा, मथियस किस्कू, मोनिका किस्कू, सुशीला
सोरेन, शीला मुर्मू, संजू
मरांडी, जोसेफ टुडू आदि मौजूद थे।
संथाली
लिपि को ले सीएम से मिला शिष्टमंडल
Mar 25, 11:56 pm
साहिबगंज। आल नेशनल संताली लिटरेरी एंड एजूकेशनल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के तत्वावधान में संताली लिपि को ले सात सदस्यीय एक प्रतिनिधि मंडल छवि हेम्ब्रम की अध्यक्षता में मुख्य मंत्री शिबू सोरेन से मिला एवं संताली भाषा की किताब ओलचिकी के बजाय देवनागरी या रोमन लिपि में छापने की मांग की।
Mar 25, 11:56 pm
साहिबगंज। आल नेशनल संताली लिटरेरी एंड एजूकेशनल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के तत्वावधान में संताली लिपि को ले सात सदस्यीय एक प्रतिनिधि मंडल छवि हेम्ब्रम की अध्यक्षता में मुख्य मंत्री शिबू सोरेन से मिला एवं संताली भाषा की किताब ओलचिकी के बजाय देवनागरी या रोमन लिपि में छापने की मांग की।
मुख्यमंत्री को सौंपे
ज्ञापन में प्रतिनिधि मंडल ने संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद
सभी स्तरों पर संताली में पढ़ाई अनिवार्य होनी चाहिए।
परंतु सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत जो संताली भाषा की पुस्तकें तैयार की गई है वो जन भाषा एवं लिपि में नहीं लिखी गई है। ये ऐसी लिपि में लिखी गई है जिसका उपयोग बहुसंख्यक संताल नहीं करते। संताली में बोली जाने वाली ध्वनि का सही उच्चारण इसमें नहीं किया जा सकता और ना लिखी जाती है। ज्ञापन में उदाहरण देकर बताया गया है कि देवनागरी में दाक् का हिन्दी पानी है। रोमन लिपि में भी डीएके’ का अर्थ पानी ही होता है। जबकि ओलचिकी में इसका अर्थ बदल जाता है।
दूसरे यह कि संताली भाषा की विशेषता हिजुक् का अर्थ आना, चालाक् का अर्थ जाना, फेडोक् का अर्थ उतरना, हेच् का अर्थ आना, देच् का अर्थ चढ़ना, मुच् का अर्थ चींटी आदि शब्दों का सही उच्चारण के लिए उपयोग होने वाले शब्द व चिन्ह को प्रयोग करने से होता है परंतु इस मूल शब्द को लिखने के लिए ओलचिकी में कोई शब्द या चिन्ह नहीं है।
प्रतिनिधियों ने मांग किया है कि उनकी कमेटी द्वारा अनुशंसित सिलेबस ही प्राथमिक से लेकर पीजी तक अनिवार्य रूप से लागू किया जाय। समिति ने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को सिलेबस भी उपलब्ध कराया है। प्रतिनिधि मंडल में गोटा भारत सि.का. हूल बैसी के सचिव जे.सोरेन, छवि हेम्ब्रम, समिति के अध्यक्ष प्रधान किस्कु, कालेज छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष इग्नेशियस मुर्मू, अध्यक्ष मनोज मरांडी, किशोर कुमार हेम्ब्रम, रोशन मुर्मू शामिल थे।
परंतु सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत जो संताली भाषा की पुस्तकें तैयार की गई है वो जन भाषा एवं लिपि में नहीं लिखी गई है। ये ऐसी लिपि में लिखी गई है जिसका उपयोग बहुसंख्यक संताल नहीं करते। संताली में बोली जाने वाली ध्वनि का सही उच्चारण इसमें नहीं किया जा सकता और ना लिखी जाती है। ज्ञापन में उदाहरण देकर बताया गया है कि देवनागरी में दाक् का हिन्दी पानी है। रोमन लिपि में भी डीएके’ का अर्थ पानी ही होता है। जबकि ओलचिकी में इसका अर्थ बदल जाता है।
दूसरे यह कि संताली भाषा की विशेषता हिजुक् का अर्थ आना, चालाक् का अर्थ जाना, फेडोक् का अर्थ उतरना, हेच् का अर्थ आना, देच् का अर्थ चढ़ना, मुच् का अर्थ चींटी आदि शब्दों का सही उच्चारण के लिए उपयोग होने वाले शब्द व चिन्ह को प्रयोग करने से होता है परंतु इस मूल शब्द को लिखने के लिए ओलचिकी में कोई शब्द या चिन्ह नहीं है।
प्रतिनिधियों ने मांग किया है कि उनकी कमेटी द्वारा अनुशंसित सिलेबस ही प्राथमिक से लेकर पीजी तक अनिवार्य रूप से लागू किया जाय। समिति ने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को सिलेबस भी उपलब्ध कराया है। प्रतिनिधि मंडल में गोटा भारत सि.का. हूल बैसी के सचिव जे.सोरेन, छवि हेम्ब्रम, समिति के अध्यक्ष प्रधान किस्कु, कालेज छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष इग्नेशियस मुर्मू, अध्यक्ष मनोज मरांडी, किशोर कुमार हेम्ब्रम, रोशन मुर्मू शामिल थे।
शुक्रवार 28 अक्तूबर 2011 को निम्नलिखित 1
(एक) समाचार इस ब्लॉग पोस्ट में जोड़ा गया
झारखंड शिक्षा परियोजना पर त्रुटिपूर्ण संताली पुस्तक प्रकाशित
करने का आरोप
Jul 29, 2011
08:04 pm
दुमका, निज प्रतिनिधि : संताली परसी लहान्ती बैसी ने झारखंड शिक्षा परियोजना
दुमका पर संताली पुस्तक चिकि ओरोम के त्रुटिपूर्ण प्रकाशन का आरोप लगाया गया है।
इस बावत संगठन की हुई एक बैठक में बताया गया कि संताली भाषा को लिखने व पढ़ने के
लिए 46 अक्षर की आवश्यकता होती है जबकि प्रकाशित पुस्तक में
मात्र 30 अक्षर का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा पुस्तक
में और भी कई त्रुटियां है जो पुस्तक प्रकाशन के उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहा है।
बैठक के बाद संगठन ने उपायुक्त प्रशांत कुमार को एक ज्ञापन देकर उक्त पुस्तक के
वितरण पर तत्काल रोक लगाने, ओलचिकी लिपि में प्रकाशित
पुस्तकों के माध्यम से संताली भाषा की पढ़ाई पर रोक लगाने, प्राथमिक
विद्यालयों में संताली की पढ़ाई के लिए देवनागरी व रोमन लिपि से पुस्तक का प्रकाशन
कर वितरण करने आदि की मांग की। उपायुक्त को दिये गये ज्ञापन में संगठन के हानुक
हांसदा, सहदेव सोरेन, लुसु हेम्ब्रम,
देवेन्द्र टुडू, रुबीन किस्कू, मोतीलाल मरांडी, अभिमन्यु बेसरा, सानुएल सोरेन आदि के हस्ताक्षर है।
प्रत्येक विद्यालय में हो संताली भाषा के शिक्षक
Sep 19, 2011 07:20
pm
साहिबगंज, जागरण
प्रतिनिधि: झारखंड सरकार द्वारा संताली को द्वितीय राजभाषा का दर्ज दिये जाने के
बाद से उत्साहित संताली भाषा भाषियों ने रविवार को एक जागरूकता रैली निकाली जिसमें
भारी संख्या में आदिवासी समाज की महिला, पुरुष
व बच्चे शामिल हुए। कार्यक्रम का नेतृत्व सिविल सर्जन डा.भागवत मरांडी ने किया।
रविवार को निकाले गये जागरूकता रैली की शुरूआत विनय
भवन के मुख्य द्वार से शुरू हुई। जो शहर के सभी मार्गो से होते हुए कालेज पहुंच कर
संपन्न हुई। रैली के बाद आंसेलरो ने मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन उपायुक्त को
सौंपा जिसमें कहा गया कि संताली को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाना संताली
साहित्य के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही मांग किया गया कि राज्य के
सभी प्राथमिक, मध्य व उच्च विद्यालयों तथा
विश्वविद्यालयों में संताली शिक्षकों के लिए पद सृजन करते हुए अनिवार्य रूप से
संताली भाषा एवं साहित्य की पढ़ाई शुरू किया जाय, स्कूलों व कालेजों में पढ़ायी जाने वाली पुस्तकों का प्रकाशन सरकार स्वयं
देवनागरी एवं रोमन लिपि में कराये, सभी
कार्यालय के लिए संताली अनुवादकों का पद सृजन करते हुए संताली अनुवादकों की बहाली
किया जाय, सभी सरकारी अधिसूचना एवं आदेश द्वितीय राजभाषा में
जारी किया जाय आदि शामिल है।
संताली-देवनागरी लिपि का इतिहास
जानने के लिए इस कड़ी को देखिए
अउर भी,
सिविल सर्विसेज़ बिडऊ लगित् दॉ क्वेश्चन पेपर दॉ
देवनागरी रेगे को सेट एत् काना । न्होंडे ञेल ताबोनपे :–
अउर आखिर में,
देखिए, ओडिसा सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के समिति ने ऑलचिकी का कैसा
छीछालेदर किया है ।
“Roman
script is used to write languages in Africa, Latin America and parts of India
and Orissa. Chinese script is the bridge among mutually unintelligible
languages/ dialects counted under Chinese. A single script is read differently
by speakers of different dialects and holds them together. In India, Sanskrit
is written in all the scripts of India. Konkani and Santali are written in five
scripts each. Sindhi is written in Nagari and Perso-rabic, Hindi, Marathi and
Sanskrit sharing one script, Nagari, Bengali, Assemese share one script each
with minor 14 modifications. So are Telugu and Kannada. Therefore need for two
scripts for two different languages is not a necessity.”
“Having
separate script is no advantage.”
“Experimentally
Santali language with Ol Chiki script was introduced in 30 schools. According
to the Kundu Report the experiment has failed.”
“First
of all it is not true that “At present the Santals all over India have started
using the scripts” A very miniscule section of Santals have opted for Ol-Chiki
in Orissa.The roadside urban and suburban centers do not want Ol Chiki .They
prefer Oriya and Bengali. In Bihar Santali is written in Nagari. The Govt. of Orissa (Dept. of Education) vide
their resolution No.XIXEM 15/91-7710 dt. 25/2/91 decided to introduce the
teaching of Santali language in Ol Chiki script on an experimental basis, as an
additional language at the primary stage” in 30 primary schools of Mayurbhanj,
Keonjhar and Sundargarh district. As follow up to this resolution teachers were
selected, Ol Chiki primers were prepared and teaching of Santali language in Ol
Chiki script was introduced in 30 schools( 20 in Mayurbhanj, 5 in Keonjhar and
5 in Sundargarh district) from May 1992.
The
experiment failed. The report of the Committee set up by the Govt. of Orissa
came to the conclusion that the parents “are found to believe in competition
and tuition. They are more in favour of learning Oriya and English. Learning
their own language and script is secondary for them (P.13)” It is most
unfortunate that emphasis on the new script takes parents away from their own
language.”
“The
Govt. is committed to maintain the language and not necessarily to be printed
in Ol Chiki script.”
“In
many of the schools teachers spoke of the Ol Chiki language. Almost everywhere
we corrected them saying that Ol Chiki is the script and Santali is the
language. We got the impression that their training is defective. They are told
precious little about the tribal language and culture.”
“The
Santals remaining in different states write their languages in different
scripts. These facilities link the home language with the dominant state
language. It helps them participate in the development and reconstruction of
the State at the earliest.”
“The
discussion with ASECA Rairangpur representatives was revealing. They have a
single point agenda-Santali should be taught through Ol Chiki . They made two
points. a.
Santali pronunciation can only be captured through Ol Chiki script. b.
Communication among Santals living in different states is only possible through
a single script.
It was pointed out to them that Sanskrit survived because it was written in various scripts of the country. All the scripts captured Sanskrit pronunciation. More over Telugu and Kannada, Bengali and Assemese, Sanskrit, Marathi and Konkani scripts are written in their respective regions. Nobody says Telugu is written in Kannada script. There is no reason why a modified Oriya script cannot be called the Santali script in Orissa.”
It was pointed out to them that Sanskrit survived because it was written in various scripts of the country. All the scripts captured Sanskrit pronunciation. More over Telugu and Kannada, Bengali and Assemese, Sanskrit, Marathi and Konkani scripts are written in their respective regions. Nobody says Telugu is written in Kannada script. There is no reason why a modified Oriya script cannot be called the Santali script in Orissa.”
“We
met some intellectuals in Baripada. One of them said that since one generation
is to be educated in the new script to teach the next and new books are to be
written the Santals will be 50 years behind the time.
Assuming
that the new script is adopted the literacy rate will go down immediately. This
is another validation of the statement that the Santal will go backwards by 50
years, if a new script is introduced at this stage.”
“The
Committee is of opinion that any language can be written in any script and
there is no bar. Pronunciation of some words in a language does not hamper the
basic character of a language, or else English would not have been the language
of world, and by now, due to bad pronunciation, it would have lost its
chastity. Instead by adopting many new words from many culture, English become
the richest language for its assimilative quality.”
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