रविवार, 31 जनवरी 2010

उच्च न्यायालय ने अनुसूचित क्षेत्रों की शहरी निकायों में चुनाव रोका !!!


जी हां, आश्चर्यजनक, किंतु सत्य ! तथा सर्वथा सराहनीय एवं स्वागत-योग्य !

सच तो इ है कि खबर ज़रा पुराना है. खबर है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर डिविज़न बेंच ने मध्यप्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों की शहरी निकायों में चुनाव रोका.

नीचे इ खबर अंग्रेज़ी में देखिये -

CIVIC POLLS IN SCEHEDULED AREAS STAYED
In an interim directive, the Madhya Pradesh High Court on Monday stayed holding of civic body elections in Scheduled Areas inhabited by tribals. A division bench of Chief Justice A.K. Patnaik and Justice Ajit Singh issued the directive during hearing of a bunch of PILs challenging the constitutional validity of section 1(2) of Madhya Pradesh Nagar Palika Adhiniyam 1961 where by civic bodies rules were executed in the state, including scheduled areas.

Arguing for the petitioners, senior advocate AM Trivedi said holding of civic bodies’ elections is not possible in the scheduled areas until parliament amends provisions of Article 243 of the Constitution. The counsel said the scheduled areas falling under the fifth scheduled of the Constitution deals with the administration and control of scheduled areas and scheduled tribes inhabited there. The scheduled areas are determined by the President, Trivedi said. The senior advocate said districts having cent percent scheduled areas include Jhabua, Mandla, Dindori Badwani and Anooppur. While districts having a portion of scheduled area include Dhar, Khrgone, Seoni, Ratlam, Shahdol, Umaria, Betul, Khandwa, Hoshangabad, Balaghat, Sheopur, Chhindwara and Sidhi, he said.
Hindustan Times, September 15, 2009

खबर इस कड़ी पर भी देख सकते हैं –

http://www.solutionexchange-un.net.in/decn/cr/res10110901.doc

इस खबर के लिये हम आभारी हैं सॉल्युशन एक्सचेंज के, जिनके बारे में अंग्रेज़ी में तनिक देखिये –

Solution Exchange is a UN initiative for development practitioners in India। For more information please visit

http://www.solutionexchange-un.net.in/

तो भैया, हमको इ तनिक बतलाइए कि हमरे झारखंड में एतना बड़ा अन्याय कैसे हो गया कि अनुसूचित क्षेत्र में नगर निगम और नगरपालिका का चुनाव हो गया ???

का ? किसी आदिवासी बुद्धिजीवी भाई-बहन ने इस धांधली का मुकाबला नही किया था ??

हां, किया था न भाई हमरे, श्री देबाशीष सोरेन, श्री विक्टर माल्टो के नैतिक समर्थन पर झारखंड उच्च न्यायालय में मामला दायर किये थे पर बेचारे वहां हार गये, पर हार नहीं माने, और अब उच्चतम न्यायालय का शरण लिये हैं. पूरा उम्मीद है जीतेंगे.

बात इ है कि जब पेसा कानून का धारा 4 (ओ) में लिखा है कि अनुसूचित क्षेत्रों में संविधान के छठी अनुसूची के तर्ज़ पर स्वशासी ज़िला परिषदों की स्थापना की जानी चाहिये और भूरिया समिति के अनुशंसाओं के हिसाब से स्वशासी ज़िला परिषद नगर समितियों या परिषदों का गठन करेगी और नगर प्रशासन के मामले, लोक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सहित, देखेगी तो कौन जरूरत है अलग से शहरी निकाय का ??
देखिये भूरिया समिति का अनुशंसा 35 (एफ) और (जी) और अनुलग्नक ‘डी’ का 1 (ई) और (एफ)

[35. ... (f) Establishment of town committees or councils and their powers
(g) Matters relating to village or town administration including village or town police.]
और
[Annexure-D
A. Legislative
...
(e) The establishment of town committees or the councils and their power
(f) Any other matter relating to town administration including town police and public health and sanitation]

भूरिया समिति रिपोर्ट नीचे की कड़ी में देखिये -

http://www.odi.org.uk/projects/00-03-livelihood-options/forum/sched-areas/about/bhuria_report.htm

लेकिन हमरी झारखंड सरकार हाथ पर हाथ धरकर नही बैठी है. लगे हाथ झारखंड अनुसूचित क्षेत्र के और शहरी निकायों, जैसे चक्रधरपुर, मिहिजाम, आदि के चुनाव का घोषणा कर दिया है.

http://ranchiexpress.com/22370.php

इसको कहते हैं -

“अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा”



गुरुवार, 28 जनवरी 2010

‘Avatar is real’, say tribal people - Survival International

सरवाइवल इंटरनेशनल 25 जनवरी को जो बात कहा, हम 6 जनवरी को ही बोल दिये थे. किरपा करके नीचे का कड़ी देखिये -

www.survivalinternational.org/news/5466?utm_source=E-news+%28English%29&utm_campaign=3cb7f422df-Enews_Jan_10&utm_medium=email

और सरवाइवल इंटरनेशनल का ही इ वीडियो प्रस्तुति देखिये नीचे का कड़ी में, जिसमें हमरे देस के ही उड़ीसा के डोंगरिया कोंड आदिवासियों पर कैसा अत्याचार हो रहा है, देखाया गया है –

http://www.youtube.com/watch?v=R4tuTFZ3wXQ

बुधवार, 20 जनवरी 2010

‘आदिवासी स्वशासन’

झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में त्रि-स्तरीय पंचायती व्यवस्था न लागू कर पेसा की धारा 4(ओ) के अनुसार संविधान की छठी अनुसूची की तर्ज़ पर स्वशासी ज़िला परिषदों की स्थापना की जानी चाहिये और केवल आदिवासी गांवों/ बस्तियों में ग्राम सभा का गठन किया जाना चाहिये. झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासी केवल स्वशासी ज़िला परिषद के मतदाता/ सीमित पदों के लिए उम्मीदवार के रूप में स्थानीय स्वशासन में हिस्सा ले सकेंगे और ग्राम स्तर पर उनकी कोई भूमिका नहीं होगी. इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा रही है. झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासी ग्राम स्तर पर स्थानीय स्वशासन में भागीदारी करने की बात अगर भूल जाएं तो उनके और आदिवासियों के लिये बेहतर होगा. अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन का अर्थ है ‘आदिवासी स्वशासन’.

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

जय हो माननीय उच्चतम न्यायालय की !

जय हो पंच परमेश्वर की ! जय हो न्याय देवी की !! जय हो माननीय उच्चतम न्यायालय की !!! आखिरकार एगो ऐसा जगह है जहां आदिवासी को अभी भी न्याय मिल सकता है. माननीय उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार, 12 जनवरी 2010 को आदिवासियों के हक में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

मामला क्या है !?
झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 और उसमें निहित आरक्षण के प्रावधानों, अर्थात झारखंड अनुसूचित क्षेत्र की पंचायतों में मुखिया के एकल पद को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया था झारखंड पंचायती राज आरक्षण अधिनियम की धारा 21 (बी) में कहा गया है कि अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम पंचायत में मुखिया व उप मुखिया के पद आरक्षित रहेंगे. इसी अधिनियम की धारा 40 (बी) में कहा गया है कि अनुसूचित क्षेत्र की पंचायत समिति में प्रमुख व उप प्रमुख के पद आरक्षित रहेंगे.अधिनियम की धारा 55 (बी) में कहा गया है कि अनुसूचित क्षेत्र की जिला परिषद में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के पद आरक्षित रहेंगे. झारखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 17 (बी) (2) में अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम पंचायतों, 36 (बी) (2) में पंचायत समितियों और 51 (बी) (2) में जिला परिषदों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इनमें कहा गया है कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद में 50 प्रतिशत सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होंगी.पिछड़ी जाति व अनुसूचित जाति को उसकी आबादी के अनुपात में आरक्षण मिलेगा. लेकिन कुल आरक्षण 80 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा.

तो फिर !?
उपर्युक्त आरक्षण के खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल हुई जिस पर उच्च न्यायालय ने उपर्युक्त अधिनियम और उसमें निहित आरक्षण के प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराते हुए निरस्त कर दिया था. झारखंड उच्च न्यायालय ने सितंबर 2005 में मुखिया पद को आरक्षित करने वाले पंचायत अनुसूचित इलाका विस्तार कानून 1996/ पेसा कानून की धारा 4 [जी] को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि मुखिया का एकल पद आरक्षित नहीं हो सकता क्योंकि इससे सौ फीसदी आरक्षण हो जाएगा जो कि आरक्षण के निर्धारित कानून के खिलाफ है.
झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को आदिवासी बुद्धिजीवियों, केंद्र सरकार और अन्य ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. सरकार और आदिवासियों की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम, वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और भुपेंद्र यादव ने खूबसूरत और तर्कसंगत दलीलें पेश कीं.

ऐतिहासिक फैसला
उच्चतम न्यायालय ने आज पंचायत चुनाव संबंधी कानून में संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है. मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें उसने पंचायत अनुसूचित इलाका विस्तार कानून 1996/ पेसा की धारा चार-जी को समाप्त कर दिया था. खंडपीठ ने अधिसूचित क्षेत्र की पंचायतों में मुखिया पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने वाले कानूनी संशोधन को संवैधानिक ठहराते हुए यह भी व्यवस्था दी कि उच्च न्यायालय के संबंधित फैसले से प्रभावित आरक्षण के अन्य प्रावधानों की वैधता भी बरकरार रहेगी. खंडपीठ के दो अन्य सदस्य थे न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम व न्यायमूर्ति जेएम पांचाल।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, पेसा अधिनियम की धारा 4(जी) और झारखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 21 (बी), 40 (बी) व 55 (बी) के तहत किये गये आरक्षण के प्रावधान संविधान सम्मत हैं. झारखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 17 (बी) (2), 36 (बी) (2) व 51 (बी) (2) भी संविधान सम्मत हैं. अदालत ने झारखंड उच्च न्यायालय के उपरोक्त प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराये जाने के फ़ैसले को अमान्य करार दिया है. कहा, संसद ने पेसा अधिनियम 1996 अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा की वजह से पारित किया था. इसलिए झारखंड पंचायती राज अधिनियम में एकल पदों का आरक्षण विशेष परिस्थितियों में संविधान के अनुच्छेद 243-एम (4)(बी) के तहत मान्य है.

अंत में,
इस सारे प्रकरण में पिछ्ले पांच बरसों से उच्चतम न्यायालय में संघर्ष करते आ रहे संताल परगना के जुझारू आदिवासी बुद्धिजीवी विक्टर कुमार मालतो का योगदान भी सराहनीय रहा.

और भी,
लड़ाई तो अभी बस शुरूए हुआ है. प्रतिक्रियावादी दिकुओं ने आदिवासियों का प्रतिकार करने का ठान लिया है. धमकी भी दे रहे हैं और हास्यापद दावे भी कर रहे हैं. भाइयों, घबराना नहीं है, सब मिलकर मुक़ाबला करेंगे.

पूरा ऐतिहासिक फैसला नीचे देखें:

http://judis.nic.in/supremecourt/imgs.aspx

बुधवार, 6 जनवरी 2010

‘अवतार’ और संताल

अभी पिछ्ले दिनों हम भी ‘अवतार’ फिलिम देख लिये. अहा-हा, डायरेक्टर जेम्स कैमरन की जय हो. क्या फिलिम बनाये हैं संताल परगना पर और संतालों पर. देख कर दिल खुश हो गया. कुछ देर के लिये हम संतालों का तमाम दुख-तकलीफ भुला गये. डायरेक्टर ने प्राचीन संताल परगना के अनछुए नैसर्गिक सौन्दर्य का बड़ा ही मनमोहक फिल्मांकन किया है. देखकर लगता ही नहीं है कि हमरा संताल परगना कभी इतना खूबसूरत रहा होगा. इस बारे में जितना भी बोलें, कम पड़ेगा. इसलिये चलिये, फिलिम का कहानी के तरफ.

कहानी है कि दिकुऑं (शोषकों, शोषक वर्ग) ने संताल परगना के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना सुरू कर दिया है. इसे काम के लिये उन्होने साम, दाम, दंड, भेद, सभी का रास्ता लिया है. कहानी में आगे पता चलता है कि संतालों की जो बस्ती है, उसके ठीक नीचे बेसकीमती खनिज पदार्थ का भंडार है. दिकु फिलिम के हिरो को एक संताल के चोले में संतालों के पास भेजते हैं ताकि वो उनके भेद ले कर बस्ती खाली करा सके. वहां उ संतालों के महान जीवन-दर्शन से परिचित होता है और एक संताल लड़की से प्रेम कर बैठता है. इसके बाद उसे पता चलता है कि बाकी दिकु किसी भी कीमत पर खनन कार्य तुरंत सुरू करना चाह्ते हैं चाहे इसके लिये सारे संतालों को मार कर संताल बस्ती को जला कर राख काहे नहीं कर देना पड़े. इ जानकर हिरो का हृदय परिवर्तन हो जाता है और उ दिकुओं के खिलाफ लड़ाई में संतालों का साथ देता है. दिकुओं के पास अत्याधुनिक हथयार हैं और संतालों के पास परंपरागत तीर-धनुष और दिकु हिरो की मदद. फिर भी जीत किसकी होती है ... ? संतालों की. फिलिम के अंत में संताल हिरो को अपना लेते हैं.

फिलिम का निर्देशन, संपादन, कलाकारों का अभिनय, स्पेशल इफेक्ट्स, कंप्युटर जनरेटेड इमेजरी, आदि सब कुछ बव्वाल है. इस बारे में टिप्पणी करना हमरे बूते के बाहर है. हमरी घोषणा है – फिलिम सुपरहिट है, हर किसी को देखनी चाहिये और खास तौर से संतालों को.

हम फिलिम देखकर घर लौटे और हमेशा की तरह आतो (गांव) की कुल्ही में दारे-बूट की दुपड़ुप (बैठक) में पूरे जोश के साथ चालू हो गये. लोगों (अधिकतर) ने मंत्र-मुग्ध हो कर सुना.

और फिर एक सिरे से हमरी बातों को खारिज कर दिया.

दिकु भैया बोले, “इ सब तो फिलिमे में होता है, सब मनघड़ंत बात है. (यहां इ बतला दें कि दिकु भैया दिकु नहीं हैं, उ हैं दि. कु. किसकु, यानी दिलीप कुमार किसकु, हमरे ममेरे भाई, हमसे बड़े. और अधिकतर संतालों की तरह दूसरे की बातों में दोष ढूंढ़ने वाले)

हम फौरन जवाब दिये, “इ बतवा तो सबको मालूम है कि अधिकतर फिलिम में कहानी मनगढ़ंते होता है. लेकिन फिलिम की इस्टोरी को आप एक दृष्टांत समझें.”

उ बोले, “ ठीक है. इसका मतलब परी कथाओं में भी दिकुओं के शोषण के खिलाफ संताल बिना किसी दिकु के मदद की कुछ नहीं कर सकते.”

जिद्दा भैया बीच में बोले, “बिल्कुल ठीक. दिसम गुरु को ही देख लिया जाय.”
(जिद्दा भैया हमरे मौसेरे भाई और गुरु होने के साथ-साथ हमरे अंतरंग मित्र हैं, हमसे बड़े.)

गिद भैया भी टपक पड़े, “इसीलिये तो कल दिसम गुरु की ताजपोशी के वक़्त सभी गांव वाले नारा बुलन्द कर रहे थे, कि
“दिसम गुरु गद्दी में, सारे संताल नद्दी में”” (गिद भैया, ममेरे भाई, हमसे बड़े – जिनको भी हम भैया लिखें, हमसे बड़े होंगे)

दिकु भैया खुद बात आगे बढ़ाये, “अरे, पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में दिकु नक्सल एही बतवा तो संतालों को समझा रहें हैं. हमको तो लगता है कि इ फिलिम नक्सलवे सब बनवाया होगा.”

जिद्दा भैया जवाब दिये, “एही हमारी समस्या है, कि हमारी समस्याओं का समाधान दिकु तलासते हैं. हम नहीं. और आज तो संतालों के एक तरफ दिकु सरकार है, और दूसरे तरफ नक्सल भाई. इधर कुंआ, उधर खाई.”

दिकु भैया बोले, “दिकु लोग तो हम लोग को खदेड़ते ही जा रहा है . कल पैन एम वाले खदेड़ा था, आज गोएनका ग्रुप खदेड़ रहा है. एक बेचारी मुन्नी हांसदा विस्थापन के खिलाफ खड़ी हुई थी, उसको वोट नही दे के तुम लोग पूंजीवादी के दलाल को वोट दे दिया. संताल का का होगा? कदुआ.”

जिद्दा भैया उपसंहार किये, “एही तो संताल की त्रासदी है कि हम हमेशा खदेड़े जाते रहे हैं और खदेड़े जाते रहेंगे. आज इस मुकाम पे हैं, कल पता नहीं, अपना कोई पता होगा या नहीं. और इ हमारी बानी नही है, आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले गुरु कोलियान हाड़ाम, मारे ‘हापड़ाम कोवाक् पुथी' में कह के गये हैं.”

हम देखे कि बैठकी में मौजूद नवयुवाओं का ग्रुप ध्यान से हमरी बातों को सुन रहा था.हम उम्मीद का एक ठन्डा सांस लिये, शायद इन्ही में से कोई ऐसा जवान उभरे जो संतालों पर होने वाले जुलुम को मिटा सके.

रविवार, 3 जनवरी 2010

स्वागत

साथियों, आप सबका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है. मैं इस ब्लॉग पर संताल समुदाय और संताल परगना के बारे में अपने विचार आप सबके सामने रखना चाहूंगा. दोस्तों, हो सकता है मेरे विचारों से आप शायद सहमत न हों पाएं क्योंकि मेरी सोच निहायत ही अपनी होने के कारण कहीं-कहीं लीक से हटकर हो सकती है, वही कई मामलों में मैं बिल्कुल ही परंपरावादी हूं. लेकिन जो भी हो, मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा. वैसे, एक बात, मुझे वैसी आलोचना,जिसमें संवेदनशीलता न हो,हज़म नही होती. तो फिर, ज़रा सावधानी से लिखिएगा ...